साथ मेरे ज़िंदगी की …(एक रचना )
साथ मेरे ज़िंदगी की रूठी किताब रख देना
जलते चरागों में बुझे वो लम्हात रख देना
रात भर सोती रही शबनम जिस आगोश में
रूठी बहारों में वो सूखा इक गुलाब रख देना
कहते कहते रह गए जो थरथराते से ये लब
साथ मेरी धड़कनों के वो जज़्बात रख देना
आज तक न दे सके जवाब जिन सवालों का
साथ मेरे वो सिसकते कुछ जवाब रख देना
मिट गयी थी दूरियां भीगी हुई जिस रात में
एक मुट्ठी साथ मेरे वो बरसात रख देना
तमाम शब तन्हाई में जो मेरे करीब रहा
साथ मेरे वो उदास इक माहताब रख देना
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।आपको भी नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर रचना, आदरणीय शुशील जी. हार्दिक बधाई व् नववर्ष की शुभकामनायें स्वीकारें.
आदरणीय khursheed khairadi जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय somesh kumar जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय SHARAD SINGH "VINOD" जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी उत्साहवर्धक प्रशंसा का हार्दिक आभार।
आज तक न दे सके जवाब जिन सवालों का
साथ मेरे वो सिसकते कुछ जवाब रख देना
मिट गयी थी दूरियां भीगी हुई जिस रात में
एक मुट्ठी साथ मेरे वो बरसात रख देना
आदरणीय सुशील सर सभी अशहार नायाब हुये हैं |सादर अभिनन्दन |
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