मस्कुराते हैं छुट्टियों के दिन
कम ही आते हैं छुट्टियों के दिन
कंपकंपाते हैं छुट्टियों के दिन
थरथराते हैं छुट्टियों के दिन
देखो सचमुच में थक गये हैं हम,
ये बताते हैं छुट्टियों के दिन
सैंकडों काम छोड कर बाकी
भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन
सपनों के बोझ में दबे बच्चे
खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन
चार दिन घर में रह नहीं पाये,
अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन
आदतें और थकान,आलस को
और बढाते हैं छुट्टियों के दिन
दफ़्तरों में छुपे कबूतर को
मुंह चिढाते हैं छुट्टियों के दिन
जैसे बरसों से भूखे-प्यासे थे
खूब खाते हैं छुट्टियों के दिन
सूबे सिंह सुजान
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
मिथिलेश वामनकर,जी शुक्रिया.....आभार
चार दिन घर में रह नहीं पाये,
अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन...
आदरणीय सूबे सिंह जी बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई स्वीकार करे
Dr Ashutosh Mishra, जी, मेरी ओर से आपको विशेष धन्यवाद . छुट्टियों में लिखी गई इस रचना पर आप महानुभावों के विचार आये तो दिल को अच्छा ही लगा।
khursheed khairadi, जी भाई साहब, आभार है आपकी पसंदगी पर
somesh kumar, जी ,आपको रचना अच्छी लगी पढकर मन को और भी अच्छा लगा। आभार
आदरणीय सुजान जी
सैंकडों काम छोड कर बाकी
भाग जाते हैं छुट्टियों के दिन
जैसे बरसों से भूखे-प्यासे थे
खूब खाते हैं छुट्टियों के दिन
सपनों के बोझ में दबे बच्चे
खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन...बेहतरीन ग़ज़ल के इन अशारो के लिए बिसेष रूप से मेरी बधाई स्वीकार करें सादर
सपनों के बोझ में दबे बच्चे
खेल पाते हैं छुट्टियों के दिन
चार दिन घर में रह नहीं पाये,
अब थकाते हैं छुट्टियों के दिन
आदरणीय सूबे सिंह सर बहुत ख़ूब , बहुत याद आते हैं जब बीत जाते हैं छुट्टियों के दिन |सादर अभिनन्दन
बहुत भाते हैं छुट्टियों के दिन /
मन को हल्का करने वाली इस सुंदर रचना पर बधाई
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव, जी आपका हृादिक आभार प्रकट करता हूँ। कृपया पधारते रहें।
जी आपकी प्रतिक्रिया पर आपका धन्यवाद बहुत अच्छा लगा आपका पधारना।
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