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‘पता चला है सेठ से तुम्हारे पुराने सम्बन्ध थे ?’- इंस्पेक्टर ने कड़क कर पूंछा I

‘जी हाँ ----I’

‘कैसे सम्बन्ध थे ?’

‘एक समय मै रखैल थी उसकी I’

‘तब तूने उसकी हत्या क्यों की ?’

‘क्योंकि वह मनुष्य नहीं राक्षस था I वह मेरी बेटी को भी अपनी हवस का शिकार बनाने जा रहा था I मैंने साले को वही चाकू से गोद दिया I’

‘तो तेरी बेटी क्या सती सावित्री थी ?’

‘नहीं साहिब , हम जैसे लोग पेट के लिए देह बेचते है I सती -सावित्री होना हमारे लिये गाली है पर मैंने उस मुंहजले को सारी सच्चाई तो पहले ही बता दी थी, फिर  उस पर शैतान क्यों सवार हो गया !’

‘कैसी सच्चाई ?’

‘यही कि  वह सेठ ही मेरी लडकी का बाप था I’

(मौलिक व् अप्रकाशित )

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:11pm

आदरणीया प्राची जी

कृतज्ञार्पित हूँ i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:09pm

विजय सर !

आपका आत्मीय आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:08pm

सोमेश जी

शत -शत आभार  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:07pm

गुमनाम पिथौरागढ़ी  जी

आपके प्रति कृतज्ञ हूँ श्रीमन i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:06pm

वामनकर जी

आपका आभार मित्र i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:06pm

आ0 बागी जी

आपसे लघु कथा पर आश्वस्ति मिलना मेरा अहोभाग्य है i सादर i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:04pm

शिखा कौशिक  जी

आपका हृदय से आभार i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:03pm

आ 0 हरिवल्लभ शर्मा जी

आपको बहुत-बहुत बधाई  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 12, 2015 at 4:02pm

आ 0 हरि प्रकाश जी

आपका आभार i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 12, 2015 at 12:05pm

कड़वी, बद-सूरत है किन्तु सच्चाई है, स्वीकारना तो पड़ेगा. बहुत बेहतर लघुकथा आदरणीय डा. गोपाल जी, हार्दिक बधाई आपको

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