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चॉंद की महफिल

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

मिटाये से नहीं मिटती न जाने याद क्‍यों उसकी

बनी तस्‍वीर है प्‍यारी जिगर में आज भी जिसकी

न हो जब पास वो मेरे लगे ये जिन्‍दगी वैसे

सजी हो चॉंद की महफिल न हो पर चॉंदनी जैसे

बता यह बात दुनिया को नही मुझको हँसाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

बना कर नाँव कागज की चला मैं ढूढ़ने उसको

किया था प्‍यार बचपन से जवानी आने तक जिसको

न चलती नाँव कागज की हकीकत आज भूले हम

न लौटेगा कभी बचपन इसी का है मुझे अब गम

मगर अब ढूढ़ कर उसको मुझे अपना बनाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

करे दिल याद उसको जब न थमते अश्‍क क्‍यों मेरे

कहे दिल आज भी उसको न है कोई सिवा तेरे

कभी मैं भेजना चाँहू लिखी जो प्‍यार की पाती

न उसका है पता मुझको न सपनो में कभी आती

कबूतर भी नहीं जिससे मुझे पाती पठाना है

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है

भले ही दर्द हो कितना नहीं उसको भुलाना है

मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी

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Comment by मिथिलेश वामनकर on January 10, 2015 at 9:30pm
सुन्दर गीत के लिए हार्दिक बधाई आदरणीय अखंड जी। 1222x4 को खूब निभाया है।
Comment by Hari Prakash Dubey on January 10, 2015 at 7:55pm

मुझे अब गम जमाने को नहीं अपना दिखाना है.........खूबसूरत भाव  और  सुन्दर रचना, आदरणीय अखंड गहमरी जी हार्दिक बधाई आपको !

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