हुई क्यों दूर दिल से मैं मिले फुरसत बता देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
बनी दुल्हन चली आई सजन मैं साथ में तेरे
करोगे प्यार मुझको तुम यही अरमान थे मेरे
मगर टूटे सभी अरमा जला दिल मैं दिखाऊँ क्या
नजर के पास रह कर भी बढी दूरी बताऊँ क्या
न आना पास अब मेरे सभी सपने जला देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
हुई क्यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना
मिला है तन तुझे मेरा नहीं क्यों मन लिया तुमने
कभी भी प्यार के इक पल नहीं मुझको दिया तुमने
दिया तुमने हवेली जो नहीं है काम की मेरे
न ये दौलत कभी देगी खुशी जो प्यार में तेरे
मुझे बस प्यार देकर तुम किया वादा निभा देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
हुई क्यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना
समझती हूँ परेशा हो नहीं आराम है तन का
दबे हो काम से इतना नहीं है चैन भी मन का
मगर इतना बता दो तुम रहूँ किसके सहारे मैं
उठा तूँफान दरिया में जाऊँ कैसे किनारे मैं
जरा सा प्यार दे फिर से सजन मुझको जिला देना
बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
हुई क्यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
बहुत सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री अखंड गहमरी जी
आदरणीय अखंड भाई , बढ़्या गीत रचना हुई है , 1222 1222 1222 1222 बह्र मे आपके खूब सूरत रचना की है , बधाई ।
उठा तूँफान दरिया में जाऊँ कैसे किनारे मैं -- इस मिसरे को और देख लें , मात्रा गड़्बड़ है ।
बहुत खूब कहा है .. बनाना इक कहानी तुम मुझे फिर वो सुना देना
हुई क्यों दूर दिल से तुम मिले फुरसत बता देना.... हार्दिक बधाई आदरणीय अखंड गहमरी साहब !
आपके मार्गदर्शन के अनुसार उसे संसोधन करने की कोशिश किया आदरणीय मिथिलेस वामनकर जी सादर नमन स्वीकार करें
उठा तूफान दरिया में नहीं पहुची किनारे मैं
आपके आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन से सफलता की राह निकली है आदरणीय डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्वत जी चरण स्पर्श स्वीकार करें
प्रिय गहमरी जी
बहुत अच्छी भाव भरी कविता आपने लिखी है i आपको बधाई i
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