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भला क्या ? |
बुरा क्या ? |
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खुदी से |
मिला क्या |
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शज़र फिर |
फला क्या ? |
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लिखे बस |
पढ़ा क्या ? |
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फलक था |
गिरा क्या ? |
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कहे बस |
सुना क्या ? |
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नहीं दम |
चला क्या ? |
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गजल ये |
क़ता क्या ? |
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कटे पर |
हवा क्या ? |
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मुहब्बत |
दवा क्या ? |
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(मौलिक व अप्रकाशित) © मिथिलेश वामनकर |
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Comment
आदरणीया प्रतिभा जी आपकी सराहना और उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आभार ... एक रुक्नी ग़ज़ल ऐसे ही कह सकते है और इस रुक्न में केवल 5 मात्रा ही उपलब्ध है वो भी 122 में ...
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार ...धन्यवाद
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर आपकी सराहना और स्नेह के लिए हार्दिक धन्यवाद . नमन
गज़ब .........आदरणीय मिथिलेश जी दिल से बधाई आपको !
गजल कहूं या पहेली ! लाजवाब i
बस ! कमाल है भाई मिथिलेश जी , बहुत खूबसूरती से इतनी छोटी बह्र निभाई है आपने । बधाइयाँ ।
आदरणीय गुमनाम सर जी इस सराहना के लिए हार्दिक आभार ... हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय खुर्शीद जी प्रयोग को पसंद करने के लिए हार्दिक आभार, धन्यवाद
आदरणीय सोमेश भाई जी आपको ग़ज़ल पसंद आई .. हार्दिक आभार धन्यवाद
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