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वाह ..... वाह आदरणीय गिरिराज सर क्या बात कही है 'ज़रा और ख़ुद को संवारा करें ' | सादर
आदरणीय राहुल साहब , मैंने पहले भी आपसे निवेदन किया है कि मैं भी आपकी तरह एक साधक भर हूं इसिलिय प्रमाणिकता के साथ कुछ नहीं कह सकता, किंतु अगर आपकी ग़ज़ल को बहरे कामिल मुरब्बा सालिम (मु तफ़ा इलुन x२) \१-१२-१२ १-१२-१२ लें तो आप इसे परिवर्तित (मुज़ाहिफ ) रूप दें तो आप नियमानुसार दोनों रुक्न में कहीं मात्रा गिरा सकते हैं सदर \इब्तिदा और अरूज़-ज़रब में निम्न बदलाव कर सकते हैं ---२-१२\१-१२ \२२\२२२\१२-१२\२१-१२ तथा १-१२-२ आपने जो रूप सुझाया है (१-१२-२२ ) यह मूल रुक्न में मात्रा में इज़ाफ़ा कर रहा है ,जो मेरी अब तक की जानकारी की हद से बाहर है |मेरे अल्पज्ञान पर भरोसा न करें और भी चर्चा कर लिरावें |सादर
आदरणीय राहुल भाई , इतनी गहरी जानकारी तो मुझे भी नहीं है , फिर भी इतना ज़रूर कह सकता हूँ अगर काफिया मे ही गड़बड-ई हो तो उसे शायद ग़ज़ल से ख़ारिज़ कर दिया जाता है । आप ऐसा क्यों नहीं कर लेते --
गज़ल मे / ही उसको / पुकारा / करे 122 122 122 12
ज़रा औ/ र ख़ुद को/ सँवारा / करे 122 122 122 12
इसी के अनुसार बाक़ी शेर भी सुधार लीजिये , अगर अच्छा लगे तो
मेरे ख़याल से ये बह्र भी मान्य बहर है ।
आदरणीय राहुल डांगी साहब ,पहले तो नाम टाइपिंग में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूं |'तक्ती अनुसार मतला पढ़ें '
तु ग़ज़ल मं उस \क पुका र कर
तु ज़रा स औ \ र सँवा र कर अगर बहर के अनुसार आप मतला रखेंगे तो आपके काफ़िये पुकार और सँवार ही मान्य होंगे जिनसे शेर बेमानी हो जायेगा | रही बात ग़ज़ल नहीं रही की तो राहुलजी सर आजकल फेसबुक पर इतने मीरो-ग़ालिब छाये हुये हैं कि बहुमत के हिसाब से तो हमें सही ग़ज़ल लिखना छोड़ ही देना चाहिए |मैं तो ख़ुद ग़ज़ल का साधक भर हूं , अतः आप मेरी बात की सिरियस न लेकर और भी मशविरा लेकर उचित निर्णय स्वयं ही लें |सादर
मैं बिगड गया, तु कहाँ है माँ!
मुझे डाँट फिर मुझे मारा कर!!
उम्दा भावाभिव्यक्ति है आदारणीय राहुल भाई, हार्दिक बधाई l
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