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इस सुन्दर ग़ज़ल पर दाद कबूलें |
आदारणीय राहुल भाई ग़ज़ल बढिया हुई है , दिली बधाई स्वीकार करें । आ. खुर्शीद भाई जी ने बहुत सही बात बताई है , काफिया मे मात्रा नहीं गिराना चाहिये ।
मेरे दोस्त दिल की जमीन पर!
तुझे जीतना है तो हारा कर!
आदरणीय दिनेश जी सुन्दर भाव युक्त ग़ज़ल हुई है |बधाई आपको , काफ़िये के हर्फ़-ए - रवी (तुक के शब्द ) जैसे यहाँ र +आ (रा) है , पर दीर्घ मात्रा को गिराकर लघु नहीं करने का नियम है अर्थायत तुक पर मात्रा नहीं गिरानी चाहिए , आपकी भावाभिव्यक्ति उम्दा है ,सादर अभिनन्दन |
मैं बिगड गया, तु कहाँ है माँ!
मुझे डाँट फिर मुझे मारा कर……………… सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई आदरणीय राहुल जी !
अच्छी रचना!
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