आदित्य ,
तुम जीवन दाई हो
तुम्हारे ताप से जीवन चलता है
प्रेम भरा स्नेह मिलता है ,
समस्त धरा को ,
तूम दिनकर हो
रजनी को विदा करते हो
अनंत काल से ,
जीवन की मुस्कराहट आती है
तुम्हारे आगमन से ,
प्रभा आती है हरियाली में जिसके
ऊष्मीय स्नेह से प्रभाकर .,
दिन के नरेश , तुम्हारी सत्ता
धरती माँ को आभा देती है ,
खिलखाते है पुष्प .
फिर सोना उगले हरियाली ,
तुम्हारे ही तेज से ,भास्कर !
तुम समस्त जीवन हो
इस आकाश गंगा के
तुम्हारा स्वागत है , नित
मेरी धरती माँ की परिधि में ,
Comment
" सुंदर रचना के लिए बहुत बधाई सादर............. " |
आपका आभार मिथिलेश जी
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