2122- 1212- 1212- 22 /112
कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये
क्या पता दिलफ़रेब बन के ग़मग़ुसार आये
मैं तुझे भूलने की कोशिशों में हूँ बेचैन
पर मुझे तेरा ही खयाल बार-बार आये
ज़ीस्त गुज़री ख़मोशियों के दरमियान मगर
ये हुआ वक़्ते मर्ग लोग बेशुमार आये
दिल नज़ारा ए रंगो गुल को कब से तरसे है
ऐ खुशी काश तू मिसाले नौबहार आये
कौन सा दह्र है ये कौन सी जगह है जहाँ
दूर तक बस नज़र गुबार ही गुबार आये
(दिलफ़रेब- धोखा देने वाला, ग़मग़ुसार- हमदर्द, वक़्ते मर्ग- मौत के समय
मिसाले नौबहार- बहार की तरह, दह्र- काल)
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
कोई सूरत तो हो कि तुझपे ऐ’तबार आये
क्या पता दिलफ़रेब बन के ग़मग़ुसार आये
आदरणीय शिज्जु भाई जी बेहतरीन ग़ज़ल हुई है । हार्दिक बधाइयाँ. ..
बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाइयाँ. .. |
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