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गजल- जान हो तुम मेरी जान लो जानेमन

212 212 212 212

एक है जान हम टुकडे दो जानेमन!
कैसे समझाए हम आपको जानेमन!!

हो नहीं सकते तुम दूर मुझसे कभी!
जान हो तुम मेरी जान लो जानेमन!!

तुम दुआ हो मेरी मेरे अरमान हो!
जिन्दगी बन्दगी तुम ही हो जानेमन!!

देख लूं जो तुझे साँस आ जाती है!
जाएँगे मर अगर तू न हो जानेमन!!

तुमको 'राहुल' पे अब भी यकीं गर नहीं!
चीर कर दिल मेरा देख लो जानेमन!!

मौलिक व अप्रकाशित!

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Comment by Rahul Dangi Panchal on January 18, 2015 at 2:08pm
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 18, 2015 at 2:07pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी माफ करना मैं आपकी बात समझा नहीं मात्रा तो ठीक ! क्रपया आप पुन: समझाए ! सादर!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 18, 2015 at 1:22pm

आदरणीय दांगी जी

आप अच्छा भाव ला  रहे है  i पर मात्रा  तो दुरुस्त रखना ही पडेगा i  आपकी कोशिश  असर ला रही है  i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 18, 2015 at 5:20am

आदरणीय राहुल भाई सुन्दर प्रयास , आदरणीय मिथिलेश जी की बात पर ध्यान दीजियेगा !

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 8:37pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी यह भी मेरी एक पुरानी गजल थी जिसे थोडा सुधार कर मैमे पेश किया सादर! मैं उन्हे भी सुधारता रहता हुँ बस आपका आशिर्वाद रहे! सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2015 at 8:16pm

आदरणीय राहुल भाई जी आपकी ग़ज़लों का स्तर इससे काफी आगे आ गया है. ये फिर से शुरुआत करने जैसा लग रहा है. ग़ज़ल की कहन वैसी प्रभावित नहीं कर रही जैसी आपकी अब तक पढ़ी ग़ज़लों में पाया है. ये मेरा मानना है बाकी गुनीजनों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करें. 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 8:06pm
आदरणीय मिथिलेश जी क्या मुझे अब रचना को मात्रा न गिरा के सुधारने चाहिए अथवा गजल ठीक है सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2015 at 7:37pm

212  /     212 /      212  /   212

एक है/ जान हम/ टुकडे दो / जानेमन!
कैसे सम/झाए हम / आपको /जानेमन!!

हो नहीं /सकते तुम/ दूर मुझ / से कभी!
जान हो/ तुम मेरी/ जान लो /जानेमन!!

तुम दुआ/ हो मेरी /मेरे अर/ मान हो!
जिन्दगी/ बन्दगी /तुम ही हो /जानेमन!!

देख लूं /जो तुझे /साँस आ /जाती है!
जाएँगे /मर अगर /तू न हो /जानेमन!!

तुमको 'रा/ हुल' पे अब / भी यकीं /गर नहीं!
चीर कर/ दिल मेरा /देख लो /जानेमन!!

आदरणीय गुमनाम सर मैंने तक़्तीअ करने का प्रयास किया है जहाँ बोल्ड और अंडरलाइन है वहां मात्रा गिराई गई है.

जानेमन----- जान-ए-मन .....  हर्फ़-ए-इजाफत का मूल वज्न १ होता है..

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 7:19pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी सादर धन्यवाद आपने मुझे पुन: समझाने का कष्ट किया! सादर नमन!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 7:17pm
आदरणीय Alok Mittal जी शुक्रिया!

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