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आदरणीय दांगी जी
आप अच्छा भाव ला रहे है i पर मात्रा तो दुरुस्त रखना ही पडेगा i आपकी कोशिश असर ला रही है i
आदरणीय राहुल भाई सुन्दर प्रयास , आदरणीय मिथिलेश जी की बात पर ध्यान दीजियेगा !
आदरणीय राहुल भाई जी आपकी ग़ज़लों का स्तर इससे काफी आगे आ गया है. ये फिर से शुरुआत करने जैसा लग रहा है. ग़ज़ल की कहन वैसी प्रभावित नहीं कर रही जैसी आपकी अब तक पढ़ी ग़ज़लों में पाया है. ये मेरा मानना है बाकी गुनीजनों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करें.
212 / 212 / 212 / 212
एक है/ जान हम/ टुकडे दो / जानेमन!
कैसे सम/झाए हम / आपको /जानेमन!!
हो नहीं /सकते तुम/ दूर मुझ / से कभी!
जान हो/ तुम मेरी/ जान लो /जानेमन!!
तुम दुआ/ हो मेरी /मेरे अर/ मान हो!
जिन्दगी/ बन्दगी /तुम ही हो /जानेमन!!
देख लूं /जो तुझे /साँस आ /जाती है!
जाएँगे /मर अगर /तू न हो /जानेमन!!
तुमको 'रा/ हुल' पे अब / भी यकीं /गर नहीं!
चीर कर/ दिल मेरा /देख लो /जानेमन!!
आदरणीय गुमनाम सर मैंने तक़्तीअ करने का प्रयास किया है जहाँ बोल्ड और अंडरलाइन है वहां मात्रा गिराई गई है.
जानेमन----- जान-ए-मन ..... हर्फ़-ए-इजाफत का मूल वज्न १ होता है..
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