For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गजल- जान हो तुम मेरी जान लो जानेमन

212 212 212 212

एक है जान हम टुकडे दो जानेमन!
कैसे समझाए हम आपको जानेमन!!

हो नहीं सकते तुम दूर मुझसे कभी!
जान हो तुम मेरी जान लो जानेमन!!

तुम दुआ हो मेरी मेरे अरमान हो!
जिन्दगी बन्दगी तुम ही हो जानेमन!!

देख लूं जो तुझे साँस आ जाती है!
जाएँगे मर अगर तू न हो जानेमन!!

तुमको 'राहुल' पे अब भी यकीं गर नहीं!
चीर कर दिल मेरा देख लो जानेमन!!

मौलिक व अप्रकाशित!

Views: 1645

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 18, 2015 at 2:08pm
आदरणीय Hari Prakash Dubey जी शुक्रिया
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 18, 2015 at 2:07pm
आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी माफ करना मैं आपकी बात समझा नहीं मात्रा तो ठीक ! क्रपया आप पुन: समझाए ! सादर!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 18, 2015 at 1:22pm

आदरणीय दांगी जी

आप अच्छा भाव ला  रहे है  i पर मात्रा  तो दुरुस्त रखना ही पडेगा i  आपकी कोशिश  असर ला रही है  i

Comment by Hari Prakash Dubey on January 18, 2015 at 5:20am

आदरणीय राहुल भाई सुन्दर प्रयास , आदरणीय मिथिलेश जी की बात पर ध्यान दीजियेगा !

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 8:37pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी यह भी मेरी एक पुरानी गजल थी जिसे थोडा सुधार कर मैमे पेश किया सादर! मैं उन्हे भी सुधारता रहता हुँ बस आपका आशिर्वाद रहे! सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2015 at 8:16pm

आदरणीय राहुल भाई जी आपकी ग़ज़लों का स्तर इससे काफी आगे आ गया है. ये फिर से शुरुआत करने जैसा लग रहा है. ग़ज़ल की कहन वैसी प्रभावित नहीं कर रही जैसी आपकी अब तक पढ़ी ग़ज़लों में पाया है. ये मेरा मानना है बाकी गुनीजनों की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा करें. 

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 8:06pm
आदरणीय मिथिलेश जी क्या मुझे अब रचना को मात्रा न गिरा के सुधारने चाहिए अथवा गजल ठीक है सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 17, 2015 at 7:37pm

212  /     212 /      212  /   212

एक है/ जान हम/ टुकडे दो / जानेमन!
कैसे सम/झाए हम / आपको /जानेमन!!

हो नहीं /सकते तुम/ दूर मुझ / से कभी!
जान हो/ तुम मेरी/ जान लो /जानेमन!!

तुम दुआ/ हो मेरी /मेरे अर/ मान हो!
जिन्दगी/ बन्दगी /तुम ही हो /जानेमन!!

देख लूं /जो तुझे /साँस आ /जाती है!
जाएँगे /मर अगर /तू न हो /जानेमन!!

तुमको 'रा/ हुल' पे अब / भी यकीं /गर नहीं!
चीर कर/ दिल मेरा /देख लो /जानेमन!!

आदरणीय गुमनाम सर मैंने तक़्तीअ करने का प्रयास किया है जहाँ बोल्ड और अंडरलाइन है वहां मात्रा गिराई गई है.

जानेमन----- जान-ए-मन .....  हर्फ़-ए-इजाफत का मूल वज्न १ होता है..

Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 7:19pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर सर जी सादर धन्यवाद आपने मुझे पुन: समझाने का कष्ट किया! सादर नमन!
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 17, 2015 at 7:17pm
आदरणीय Alok Mittal जी शुक्रिया!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
20 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Wednesday
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Nov 30
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service