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ग्रेजुएशन की पढाई कर रहे राजेश और सुरेश अच्छे दोस्त थेI राजेश बहुत ही गरीब घर से थाI और सुरेश रहीस खानदान से थाI लेकिन दोनों के विचार मिलते थेI इसलिए दोनों में अच्छी दोस्ती थीI राजेश के घर में तीन बहिने, बूढी माँ और बीमार पिता थेI उन के घर की आर्थिक हालत ठीक नहीं थीI लेकिन सुरेश कभी कभी राजेश की सहायता कर देता थाI सुरेश के घरवालों को ये कतई मंजूर नहीं था की उनका बेटा किसी गरीब के घर जायेI इसी कारण दोनों में दूरिया बढ़ती गयीI उन्हीं दिनों में राजनैतिक दांव पेंच के बीच आरक्षण प्राप्त समुदायों की सूचि जारी हुईI जिस में सुरेश के समुदाय का नाम थाI पर राजेश के समुदाय का नाम नहीं थाI जिस की राजेश के समुदाय को सख्त जरुरत थीI देश में अजीब विडंबना है की आरक्षण पुरे समुदाय, जात-पात के आधार पर दिया जाता है चाहे उस समुदाय में कितने भी करोड़पति क्यों ना होI राजेश इस राजनैतिक दंगल में नहीं पड़ना चाहते थाI वो अपनी मेहनत से आगे बढ़ना चाहता थाI राजेश और सुरेश ने ग्रेजुएशन के बाद बीएड की पढ़ाई भी एक साथ की थीI और दोनों गवर्मेंट जॉब में भाग्य आजमा रहे थेI राजेश ने बीएड करने के बाद कम्पीटीसन की तैयारी के साथ साथ घर की जिमेवारी लेते हुई छोटे मोटे काम भी करता थाI जिस से उस के घर का खर्च चल जाता थाI लेकिन एक बड़ी चिंता उस की माँ को सत्ता रही थी वो थी तीन बेटियो की शादी, जिस हालत में घर का खर्च भी चला पाना मुश्किल है उस हालत में शादी के खर्चो का जिक्र भी नींद उड़ा देता हैI यही बात माँ ने अपने बेटे को बताई तो बेटा बोला माँ बस एक साल और ठहर जा अभी राज्य सरकार नौकरी
निकालने वाली हैI जैसे ही नौकरी लग जाएगी बहनो की शादी बड़े धूम धाम से करेंगेI माँ को अपने बेटे की दिलासा अच्छी लगती थीI और उसे विश्वास था की मेरा बेटा मेरी उंमीदो पर खरा निकलेगा, कुछ दिनों बाद सरकार द्वारा टीचर की 1500 पदो पर भर्ती निकली तो राजेश को उमीद की किरण नजर आई, फॉर्म भरवा कर राहत की सांस ली एक महीने बाद एग्जाम की तारीख आई तो राजेश और कड़ी मेहनत में जुट गयाI उस के मन में एक ही सवाल था की अगर ये नौकरी नहीं लगी तो बहनो की शादी भी नहीं हो पायेगी, यही एक आशा की किरण हैI क्योकि छोटे मोटे कम्पीटीसन में असफलता की वजह से उस की कमर टूट चुकी थीI और गाँव के साहूकारों का कर्ज भी चुकाना थाI इस लिए वह रात दिन कड़ी मेहनत करता थाI और एग्जाम की जबरदस्त तैयारी कर रहा थाI तभी भगवान को कुछ और ही मंजूर थाI एक जक्जोर देने वाला पल आ गयाI उस के पिता जी का देहांत हो गयाI आर्थिक कमजोरी के चलते इतना बड़ा झटका उस का दिल दहला देने वाला थाI फिर
भी उस ने हिम्मत से काम लियाI जैसे तैसे क्रिया कर्म कियाI और अतीत को भुलाकर, एग्जाम की तैयारी में लग गयाI तब तक एग्जाम की तारीख भी नजदीक आ गयी थीI एग्जाम के दिन माँ ने दही खिलाकर रवाना कियाI एग्जाम सेंटर पर राजेश की मुलाकात सुरेश से हुईI सुरेश भी वहा पर एग्जाम देने आया थाI कई दिनों बाद मिले इस लिए खूब बाते की, और वादा किया की जो भी इस एग्जाम में पास होगा वो एक दूसरे के घर आयेगे, उतने में घंटी बजी और सब अपने अपने रूम में बैठ गएI जब पेपर होने के बाद राजेश बाहर आया तो बहुत खुश नजर आ रहा थाI पर सुरेश थोड़ा उदास था, राजेश ने उदासी के बारे में पूछा तो सुरेश बोला यार पेपर कुछ खास नहीं हुआ अगर मेरिट कम रही तो नंबर आ सकता है नहीं तो कहना मुश्किल हैI सुरेश ने राजेश से पूछा तू बड़ा खुश लगरहा हैI राजेश बोला इस बार पेपर बहुत अच्छा हुआ है लगता है इस बार नंबर आ जायेगाI
दोनों अपने अपने घर चलें गएI राजेश घर गया तो उस की माँ ने पूछा कैसा रहा एग्जाम! राजेश बोला माँ लगता है रिजल्ट के बाद तुम्हें कही से पैसे नहीं मांगने पड़गेI ये बातें सुन कर माँ की आँखों में पानी आ गया, बहिने शादी के सपने सजोने लगी थीI ये सब के साथ टाइम निकलता गयाI और एक दिन रिजल्ट से पहले एग्जाम की मेरिट निकलीI उस में बिना आरक्षण वालो की 63%, और आरक्षण वालो की 58% रही, मेरिट लिस्ट देखकर राजेश को यकीन हो गया की इस बार नौकरी पकी हैI एक दिन राजेश बाहर से आया और माँ से बोला मेरा सिर दर्द कर रहा हैI अंदर कमरे में हुँI अंदर कोई मत आना, कुछ देर बाद सुरेश आया और बोला आँटी राजेश
कहा है रिजल्ट आ गया हैI मुझे तो 59% मिला है में तो पास हो गया, सब लोग भाग कर कमरे की और गए और आवाज लगाई राजेश, सुरेश आया हैI रिजल्ट आ गया हैI वो तो पास हो गया हैI तेरा क्या रहा, लेकिन अंदर से कोई आवाज नहीं आई, माँ से रहा नहीं गयाI दरवाजे को जोर जोर से थप थापने लगीI और जोर जोर से राजेश राजेश चिलाने लगीI फिर भी कोई हरकत नहीं हुईI तो सुरेश और सब ने मिल कर दरवाजा तोडा तो अंदर का हाल देख कर उस की माँ वही पर बेहोश हो गईI बहिनो का रो रो कर बुरा हाल थाI सुरेश ने भी राजेश को पंखे से लटका देख आंसू रोक नहीं पायाI सुरेश ने सोचा, राजेश ने ऐसा क्यों किया! , तभी सुरेश की नजर
टेबल पर रखी हुई चिट्ठी पर पड़ी, वो उस के पास गया और उसे देखा तो उस की आँखे फटी की फटी रह गयीI उस पर लिखा था मेरा रिजल्ट 61.88%, राजेश की माँ भगवान को कोस रही थीI एक ही सहारा था वो भी छीन लिया, सुरेश ये सब देख सून हो गया थाI और अपने आप से यही सवाल कर रहा था की क्या आरक्षण ने राजेश की हत्या कर दीI और कही न कही इस मौत का जिम्मेवार में भी हुI क्योकि हर सुविधा होने के बावजूद मैने आरक्षण का गलत फायदा उठायाI

"मौलिक व अप्रकाशित"

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Comment by harikishan ojha on January 21, 2015 at 11:05am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद


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Comment by गिरिराज भंडारी on January 21, 2015 at 10:27am

आदरणीय हरि भाई , का संदेश बहुत अच्छा है , शिल्प के विषय मे आ.अग्रज  गोपाल जी ने बता ही दिया है , आपको रचना के लिये बधाई ।

Comment by harikishan ojha on January 21, 2015 at 10:06am

आदरणीय लक्ष्मण जी आप का बहुत बहुत धन्यवाद

Comment by harikishan ojha on January 21, 2015 at 10:00am

आदरणीय हरी प्रकाश जी टिप्पणी के लिए धन्यवाद

Comment by harikishan ojha on January 21, 2015 at 9:59am

जितेन्द्र जी हौसला बढ़ाने के लिए धन्यवाद

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on January 19, 2015 at 7:03pm

सुंदर कथ्य पर कहानी रची है थोड़ी कसावट की कमी जरूर है | पर भावपूर्ण रचना के लिए  बधाई 

Comment by Hari Prakash Dubey on January 19, 2015 at 7:01pm

आदरणीय हरिकिशन ओझा  जी....सुन्दर और यथार्थ को दर्शाती रचना  ...."देश में अजीब विडंबना है की आरक्षण पुरे समुदाय, जात-पात के आधार पर दिया जाता है चाहे उस समुदाय में कितने भी करोड़पति क्यों ना हो" सुन्दर प्रयास , लिखते रहिये !

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on January 19, 2015 at 6:01pm

बहुत अच्छी कहानी. जहाँ आवश्यकता होती है ,वहां यही सब देखने को मिलता है. अभी कुछ दिन पहले ही मैंने अखबार में पढ़ा कि बहुत से लोग झूठे विकलांगता के प्रमाण-पत्र बनवाकर फायदा ले रहे हैं और जो सच में है वो. बहरहाल आपके प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई ,आदरणीय हरिकिशन जी

Comment by harikishan ojha on January 19, 2015 at 5:20pm

Shree Vastav ji aap ki salah par jarur gor karuga. aap ko bahut bahut dhanyawad ki aap ne dil se bat ki nahi to aaj kal log jhut hi likh dete hai ki bahut aacha likha hai, aap ko me guru ke samal samajta hu. dhanyawad

Comment by harikishan ojha on January 19, 2015 at 5:11pm

somesh ji aap ko bahut bahut dhanyawad

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