चौराहे पर आकर एक लम्बी कार रुकी तो एक भिखारिन अपने बच्चे को गोद में उठा कर उस के पास जाकर भीख मागने लगी तभी उसकी नजर उस कार की पिछली सीट पर रखी एक फोटो पर गई जिस में एक गरीब औरत पुराने चिथड़ों से अपने शरीर को ढकते हुए अपने बच्चे को अपने आँचल में छुपाते हुए डरी सहमी बैठी थी यह वही फोटो थी जो पिछले दिनों लाखो रुपयों में बिकी थी, इतनी ही देर में कार के अंदर से आवाज आई, "चल चल आगे चलो न जाने कहा से आ जाते है मुँह उठा कर शर्म भी नहीं आती" ऐसी बातें सुनने की भिखारिन को आदत थी उस के गोद में लटकता बच्चा उस फोटो को टक टकी लगाकर देख रहा था और वो औरत दूसरी गाड़ी की तरफ आगे बढ़ रही थी में दूर खड़ा इस नज़ारे को देख रहा था और मन ही मन सोच रहा था कि क्या विडम्बना है लोग गरीब की फोटो लाखो रुपयों में खरीद लेते है लेकिन उसे २ रुपये देने से कन्नी काट लेते है
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
जितेन्द्र पस्टारिया जी आप का धन्यवाद,
आपने बहुत ही बेहतर विषय को , लघुकथा के माध्यम से प्रस्तुत किया है. हालाँकि मैं भी सीख रहा हूँ, सुधिजन के सुझाव व् मार्गदर्शन की प्रतीक्षा है. आपके प्रयास पर आपको बधाई व् शुभकामनायें आदरणीय हरिकिशन जी
सोमेश जी आपका शुक्रिया, आप की सलाह पर जरूर गोर किया जायेगा, एक लेखक को अपनी लेखनी का तभी पता चलता जब वह अपनी कहानी दुसरो के सामने पेश करता है, आप का बहुत बहुत धन्यवाद देता हु,
दुबे जी आपका शुक्रिया, अनुभवी लोगों से कमेंट मिलना हमारे के लिए मिल का पत्थर साबित हो सकता है, आप को बहुत बहुत धन्यवाद
वामनकर जी आपका शुक्रिया और बहुत बहुत धन्यवाद,
अर्चना जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद, हौसला अफजाई के लिए
अच्छा प्रयास है बधाई स्वीकार करें ... लघुकथा के शिल्प के विषय में गुनीजन ही बता सकते है
सुन्दर प्रयास , आदरणीय हरिकृष्ण ओझा जी , बाकी सोमेश भाई की बात पर विचार करें !
anbhv ko aapne sanjha kiya hai ya is trh prstut kiya hai ,pr lghuktha ke lie abhi aur abhyas kren
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