माँझी मंजिल से पृथक डालो नहीं पड़ाव
भँवर भरे मझधार में क्यों उलझाते नाव?
क्यों उलझाते नाव, लहर पथ कहाँ उकेरे
उथल-पुथल संघर्ष, लाख चौरासी फेरे ,
एकल करो विमर्श! बात करनी क्या साँझी?
क्या होगा परिणाम, राह भटके जो माँझी?
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
प्रस्तुति के भाव व कथ्य पर अनुमोदन के लिए धन्यवाद आ० संजय कुमार झा जी
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी
मन मांझी अगर भाव भंवर में जीवन की नाव उलझा दे तो लक्ष्य से भ्रमित हो ही जायेगी न गति...इसी भाव को प्रस्तुत करने का प्रयास किया है... आपको यह प्रयास सार्थक लगा ..आपकी आभारी हूँ
सादर
इस कुण्डलिया छंद की सराहना कर उत्साहवर्धन करती प्रतिक्रया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया राजेश जी
एक - एक शव्द माला की तरह है !! अद्भुत !!
एक - एक शव्द ,शव्द बाण की तरह अचूक
चित्त कर रहा चिंतन, होकर इस पर मूक
होकर इस पर मूक , पड़ा हूँ चिंतन में
उठा रहा अनेको प्रश्न, मेरे जेहन में
का से करूँ विचार ? पूछूँ मैं का से रास्ता एक
सब चले हैं अपने डोर, नहीं कोई इतना सस्ता एक
आदरणीया प्राची जी , अपने स्व को , न भटकने की दी गई समझाइश बहुत सार्थक और एक आवश्यक समभाइश लगी । उसे पाने के लिये एक पर टिके रहना परम आवश्यक है । इस आध्यात्मिक सोच के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
बहुत सुन्दर कुण्डलिया लिखी है प्रिय प्राची बहुत- बहुत बधाई.
आ० हरि प्रकाश दूबे जी
रचना का कथ्य और कथ्यसान्द्रता आपसे अनुमोदन पा सकी ..यह मेरे लिए आश्वस्तकारी है
आपका आभार
आ० डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
प्रस्तुति की अंतर्धारा पर आपकी टिप्पणी अभिव्यक्ति की संप्रेषणीयता के प्रति आश्वस्त करती सी है.. वस्तुतः इसमें एक सजग इकाई द्वारा मनस व बुद्धि के inner dialogue को प्रस्तुत करने की चेष्टा की है.
अभिव्यक्ति की सराहना और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
आदरणीय डॉ० विजय शंकर जी, आ० लक्ष्मण प्रसाद जी, आ० डॉ० आशुतोष जी प्रस्तुत अभिव्यक्ति को स्वीकारने और शुभकामनाएं प्रेषित कर उत्साहवर्धन करने के लिए हार्दिक धन्यवाद
आदरणीय मिथिलेश जी
इस प्रस्तुति पर कामायनी जैसी उत्कृष्ट कृति की कुछ पंक्तियों को साँझा कर आपने प्रस्तुत प्रयास को मान दिया है.. तहे दिल से आभारी हूँ
सादर
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