दीपक जलाओ
मैं जीवन रंगोली-रंगोली सजा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
माटी बनूँ ! रूँध लो, गूँथ लो तुम
युति चाक मढ़ दो, नवल रूप दो तुम
स्वर्णिम अगन से
जले प्राण बाती-
मैं स्वप्निल सितारे लिये जगमगा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
ओढूँ विभा सप्तरंगी तुम्हारी
छू लूँ चपलता मलंगी तुम्हारी
सुगंधि तुम्हारी
महक रूह की हो-
यूँ कतरे-कतरे में तुमको बसा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
तुम्हारी कदम-थाप की आवृति पर
हृदय साज की सुरमयी झंकृति पर
श्वासों की कण-कण
समर्पित नृति से-
करूँ आरती सारी रस्में निभा लूँ
....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ
डॉ० प्राची
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
अत्यंत मनभावन रचना ..हृदयतल से बधाई आ० प्राची जी | सादर
SUNDAR AUR MANBHAAWAN RACHNAA - DHERON BADHAAEE
सुन्दर मनोभावोँ से सजी रचना
वाह !चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ, बहुत ही सुंदर ... कितना सुंदर गीत है, आनंद आ गया ...
आदरणीय आदित्य कुमार जी
मेरी लिखी रचना आप घर पर पढ़ कर सुनाते हैं..... ये जानना मुझे बहुत अन्तः संतोष दे रहा है
आपके अनुमोदन के लिए आभारी हूँ
आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी
प्रस्तुत गीत आपके पाठक को संतुष्ट कर सका ये जानना मेरे लिए तोषकारी है..
अभिव्यक्ति में यदि कुछ शब्द ऐसे हों जो पाठक अपनी कल्पना के विवध आयामों से ग्रहण करें तो शायद अभिव्यक्ति और खूबसूरत हो जाती है.... 'युति' शब्द एकत्व या संयोग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ....दीपक, बाती रंगोली में पशुओं को नहीं बांधा है आदरणीय :))
आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद
सादर.
गीत के शिल्प व भाव पर आपकी सराहना और अनुमोदन के लिए आभारी हूँ आ० सत्यनारायण सिंह जी
आपकी कवितायेँ।। कुछ कहते नहीं बनता , आप इतना अच्छा लिखती हैं मै पढ़ कर सुनाता हूँ घर पर। सुबह दीपोत्सव
आदरणीया
आपकी कविता मे सदैव एक उच्च स्तर देखने को मिलता है i इस में भी है i 'युति चाक मढ दो' पर पुनः विचार कर ले
युति पशु के बंधना को कहते है i कुछ और अर्थ भी है i आप विदुषी है i आप से क्या कहें i सादर i
आ० डॉ. विजय शंकर जी
वैविध्य ही खूबसूरत लगता भी है..अन्यथा समरसता ऊबाऊ होने लगती है.... और खूबसूरती के तो अनगिन आयाम हैं ..सहमत हूँ
और सचमुच भाव अनमोल ही होते हैं.
आपने जिस भाव से इस को गीत स्वीकार किया है..... और उत्साह से अनुमोदित किया है उसके लिए मैं आपकी हृदय से आभारी हूँ
सादर
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