For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मैं जीवन रंगोली-रंगोली सजा लूँ (डॉ० प्राची)

तुम मुस्कुराहट के

दीपक जलाओ

मैं जीवन रंगोली-रंगोली सजा लूँ

....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ

 

माटी बनूँ ! रूँध लो, गूँथ लो तुम

युति चाक मढ़ दो, नवल रूप दो तुम

स्वर्णिम अगन से

जले प्राण बाती-

मैं स्वप्निल सितारे लिये जगमगा लूँ

....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ

 

ओढूँ विभा सप्तरंगी तुम्हारी

छू लूँ चपलता मलंगी तुम्हारी

सुगंधि तुम्हारी

महक रूह की हो-

यूँ कतरे-कतरे में तुमको बसा लूँ

....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ

 

तुम्हारी कदम-थाप की आवृति पर

हृदय साज की सुरमयी झंकृति पर

श्वासों की कण-कण

समर्पित नृति से-

 करूँ आरती सारी रस्में निभा लूँ

....चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ 

डॉ० प्राची 

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 1714

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Meena Pathak on November 25, 2014 at 4:33pm

अत्यंत मनभावन रचना ..हृदयतल से बधाई आ० प्राची जी | सादर 

Comment by MUKESH SRIVASTAVA on November 24, 2014 at 2:18pm

SUNDAR AUR MANBHAAWAN RACHNAA - DHERON BADHAAEE

Comment by Mohinder Kumar on November 3, 2014 at 1:06pm

सुन्दर मनोभावोँ से सजी रचना 

Comment by Neeraj Neer on October 28, 2014 at 9:22pm

वाह !चलो आज मैं भी दीवाली मना लूँ, बहुत ही सुंदर ... कितना सुंदर गीत है, आनंद आ गया ... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 28, 2014 at 7:19pm

आदरणीय आदित्य कुमार जी 

मेरी लिखी रचना आप घर पर पढ़ कर सुनाते हैं..... ये जानना मुझे बहुत अन्तः संतोष दे रहा है

आपके अनुमोदन के लिए आभारी हूँ 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 28, 2014 at 7:17pm

आदरणीय डॉ० गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी 

प्रस्तुत गीत आपके पाठक को संतुष्ट कर सका ये जानना मेरे लिए तोषकारी है..

अभिव्यक्ति में यदि कुछ शब्द ऐसे हों जो पाठक अपनी कल्पना के विवध आयामों से ग्रहण करें तो शायद अभिव्यक्ति और खूबसूरत हो जाती है.... 'युति' शब्द एकत्व या संयोग के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ....दीपक, बाती रंगोली में पशुओं को नहीं बांधा है आदरणीय :))

आपकी शुभकामनाओं के लिए धन्यवाद 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 28, 2014 at 7:11pm

गीत के शिल्प व भाव पर आपकी सराहना और अनुमोदन के लिए आभारी हूँ आ० सत्यनारायण सिंह जी 

Comment by Aditya Kumar on October 22, 2014 at 7:55pm

आपकी कवितायेँ।। कुछ कहते नहीं बनता ,  आप इतना अच्छा लिखती हैं मै पढ़ कर सुनाता हूँ घर पर।  सुबह दीपोत्सव 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on October 20, 2014 at 5:10pm

आदरणीया

आपकी कविता मे सदैव एक  उच्च स्तर देखने को मिलता है i  इस में  भी है i  'युति चाक मढ  दो'  पर पुनः विचार कर ले

युति पशु के बंधना को कहते है  i कुछ और अर्थ भी है i आप विदुषी है  i आप से क्या कहें i  सादर i


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 20, 2014 at 1:18pm

आ० डॉ. विजय शंकर जी 

वैविध्य ही खूबसूरत लगता भी है..अन्यथा समरसता ऊबाऊ होने लगती है.... और खूबसूरती के तो अनगिन आयाम हैं ..सहमत हूँ 

और सचमुच भाव अनमोल ही होते हैं.

आपने जिस भाव से इस को गीत स्वीकार किया है..... और उत्साह से अनुमोदित किया है उसके लिए मैं आपकी हृदय से आभारी हूँ 

सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
yesterday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Friday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Friday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Friday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"असमंजस (लघुकथा): हुआ यूॅं कि नयी सदी में 'सत्य' के साथ लिव-इन रिलेशनशिप के कड़वे अनुभव…"
Friday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
Thursday
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service