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ग़ज़ल: मर्ज़ अपने हैं सभी...

मर्ज़ अपने हैं सभी कोई न बेगाना
मेरे घर का एक कोना है दवाखाना

इक नशा सा है मगर साकी न पैमाना
ज़ख़्म अपने पास हैं और दूर मैखाना

किस बीमारी का पता क्या है, वतन क्या है
पूछना कुछ हो तो मेरे घर पे आ जाना

आह भी है, ऊह भी है, शाम है ग़मगीन
शम्अ जलती दर्द की, मैं मस्त परवाना

कोई काँटा, कोई पत्थर, कोई ख़ंजर है
दर्ददाताओं से ही अपना है याराना

इक ग़ज़ल आयी ठिठुरती, कह गयी मुझसे
जम न जाना, जनवरी में ठंड है, माना ।

धूप धरती से किसी ने अपहरण कर दी
बादलों के पार भी तो हो कोई थाना

उन बहारों के न कोई ख़्वाब थे फिर भी
बन गयी कल की हक़ीक़त आज अफ़साना

कर दिये थे बन्द, दिल के खिड़की दरवाज़े
फिर भी अंदर सज गया माहौल ग़ज़लाना

नृत्य करती हैं हवाएँ बाँधकर घुँघरू
बज रही है ताल धिन् धिन् ताना धिन् ताना

ये महल, दौलत तुम्हें ही हो मुबारक यार
अब मिरी आज़ादी पर भी जी न ललचाना
(मौलिक व अप्रकाशित)
-कृष्णसिंह पेला

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Comment by Krishnasingh Pela on January 22, 2015 at 10:41am
आ.प्रतिभा त्रिपाठी जी, आप की प्रतिक्रिया से मेरा उत्साह काफी बढ़ा है । आपको सादर धन्यवाद !
Comment by Krishnasingh Pela on January 22, 2015 at 10:38am
आ. गिरिराज भण्डारी जी , हौसला आफजाइ के लिए तहे दिल से शुक्रिया । सादर ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 22, 2015 at 8:09am

बादलों के पार भी तो हो कोई थाना  -----  बहुत सुन्दर भाई कृष्णा सिंग जी , हार्दिक बधाइयाँ ।

Comment by Krishnasingh Pela on January 21, 2015 at 6:53pm
हौसला अफ़्जाई के लिए बहुत शुक्रिया श्याम नारायण जी । आप से बधाई प्राप्त कर के मैं प्रेरणा से भर गया हूँ । सादर ।
Comment by Shyam Narain Verma on January 21, 2015 at 11:21am
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by Krishnasingh Pela on January 21, 2015 at 8:51am
आ. भुवन जी आपने ग़ज़ल को सराहा तो मेरे उत्साह के शिखर ने और अधिक उचाई ली । हार्दिक धन्यवाद ।
Comment by Krishnasingh Pela on January 21, 2015 at 8:45am
आ. राहुल साहब बहुत शुक्रिया । आप लोगों की दुआएँ प्राप्त करना मेरा सौभाग्य है ।
Comment by भुवन निस्तेज on January 21, 2015 at 8:28am
बड़ी अच्छी ग़ज़ल कही है आदरणीय कृष्ण सिंह पेल जी नें। पूरी ग़ज़ल झूमने पर मजबूर कर देती है।
Comment by Rahul Dangi Panchal on January 20, 2015 at 10:07pm
आदरणीय क्या कहूं मुझे आपकी गजल कुछ ज्यादा ही भा गई बस मजा आ गया! ! दुआ करता हुँ आपकी कलम से ऐसी ही रसभरी गजल निकलती रहे! सादर!
Comment by Krishnasingh Pela on January 20, 2015 at 10:00pm
आ. हरि प्रकाश साहब आप से बधाइ प्राप्त कर मेरी रचना धन्य हो गयी है । हार्दिक धन्यवाद !

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