संघर्ष,
कहीं भी हो ,
कैसा भी हो,
होता, बहुत बुरा है ,
बहुत तड़पाता है,
काटता है ,
दुधारा छुरा है !
लेकिन,
संघर्ष न हो ,
तो सूख जाता है ,
मन का चमन ,
हर हाल में,हरा रखे ,
आदमी को,
संघर्ष वो सुरा है !
डरता,
जो पीने से ,
संघर्ष के,
छलकते हुए पैमाने ,
उस आदमी का जीवन,
बड़ा बेरंग,
बड़ा बेसुरा है !
लड़ता ,
हर आदमी है,
अपनी लड़ाई ,
अपने ही अंदाज़ में,
मगर लड़ता है जो ,
संघर्ष के साथ ,
वही रण बांकुरा है !
आप भी ,
घबराइये मत ,
संघर्ष में, आनंद खोजीये,
क्योंकि जिंदगी,
घूमती है,
जिसके चारों तरफ
संघर्ष वो धुरा है !
अब ,
हर चोट पर ,
मेरा साहस और बढ़ जाता है ,
हर असफलता पर मेरा उत्साह ,
दुगना हो जाता है ,
मैंने संघर्ष में आनंद खोज लिया है,
मेरा हर पल आनंद से गुजर जाता है !
© हरि प्रकाश दुबे
"मौलिक व अप्रकाशित”
Comment
आदरणीय डॉ विजय शंकर सर , प्रोत्साहन हेतु आपका हार्दिक आभार ! सादर
आदरणीय गिरिराज सर, प्रेरणादायी टिप्पणी के लिए हृदय से धन्यवाद आभार।सादर
शिशिर जी ,आपका धन्यवाद ! सादर
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आपकी प्रतिक्रिया से उत्साह मिला आपका बहुत - बहुत धन्यवाद ! सादर
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , बहुत सुन्दर प्रेरणा दायी रचना हुई है , सच तो है जीवन का दूसरा नाम ही संघर्ष है । आपको हार्दिक बधाइयाँ ।
आदरणीय हरिप्रकाश दुबे जी सकारात्मक और प्रेरित करती बेहतरीन कविता... छोटी छोटी पंक्तियों में कमाल के भाव उभरकर आये है. ये पंक्तियाँ बेहतरीन और गहरे तक प्रभावित करती है-
मैंने संघर्ष में आनंद खोज लिया है,
मेरा हर पल आनंद से गुजर जाता है !
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया सर, आपके प्रेरणादायक शब्दों के लिए आपका हार्दिक आभार ,गणतंत्र दिवस की शुभकामनायें" ! सादर
सोमेश भाई उत्साहवर्द्धन के लिए सादर धन्यवाद !
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