रिक्शा वाला
************
आपको याद तो होगा
वो रिक्शा वाला
गली गली घूमता ,
माइक में चिल्लाता , बताता
आज फलाने टाकीज़ में , फलानी पिक्चर लगी है
पर्चियाँ हवा में उड़ाता
पर्चियों के लिये रिक्शे के पीछे भागते बच्चे
बच्चों को पर्चियाँ छीनते झपटते देख खुश होता
किसी निराश हुये बच्चे को पर्ची कभी अपने हाथों से दे देता
बिना किसी अपेक्षा के , आग्रह के ,
एक जानकारी सब से साझा करता
न कोई आग्रह , न अपेक्षा
और न ही शिकायत
आपके उस टाकीज़ तक न पहुँचने की
एक और रिक्शा वाला
पर्चियाँ उड़ाके ये बात साझा करता है
अपेक्षाओं और आग्रहों की ज़मीन में ही
पुष्पित पल्लवित होतीं है,
निराशायें , दुख- तकलीफें
वैसे तो आप स्वतंत्र हैं
अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये
फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी
फिर भी
चाहें तो पर्चियाँ सहेजें या चाहें उड़ा दें
रिक्शे वाला फिर आयेगा , दूसरे दिन
उसी उत्साह के साथ
और पर्चियाँ ले के
**********************
मौलिक एवँ अप्रकाशित
Comment
आदरणीय मिथिलेश भाई , आपको रचना पसंद आई तो हार्दिक खुशी हुई , सराहना और उत्साह वर्धन के लिये आपका आभारी हूँ ।
आदरणीय सोमेश भाई , रचना के अनुमोदन के लिये आपका बहुत आभार ।
वैसे तो आप स्वतंत्र हैं
अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये
फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी
फिर भी
चाहें तो पर्चियाँ सहेजें या चाहें उड़ा दें
रिक्शे वाला फिर आयेगा , दूसरे दिन
उसी उत्साह के साथ
और पर्चियाँ ले के
---
वाह उम्दा पंक्तियाँ ..... भाव गहराई तक छू गए.
पुराने दिन याद दिला दिए... कस्बेनुमा शहर जहाँ गिनचुन के एक ही टाकीज हुआ करती थी जो वास्तव में वीडियों हॉल होते थे. वो रिक्शा, फिल्म के गाने बजाता भोपू और रद्दी कागज के पोम्प्लेट ... छत्तीसगढ़ में खैरागढ़ में रहा हूँ वहां घर से स्कूल के बीच की सड़क पर पड़ने वाली टाकीज, सिविल लाइन के हरे भरे वृक्ष और भी कितना कुछ. कितनी स्मृतियाँ जाग गई, कितने लोग याद आ गए. लग रहा है मेरे अपने अनुभव को आपने शब्द दे दिए. इस भावपूर्ण सुन्दर रचना को प्रस्तुत कर मुझे पढ़ने का अवसर प्रदान करने के लिए आभार. नमन.
आदरणीय ,इस तरह के अनुभव प्राप्त तो नही हुए पर इस कविता के माध्यम से उन दिनों कि कल्पना से एक अलग सा रोमांच हो आया |
अच्छी विषय-वस्तु लिक, से हटकर और सबको एक अलग सा अनुभव कराने वाली रचना |
आदरणीय हरि प्रकाश भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।
आदरणीय जितेन्द्र भाई , रचना की सराहना के लिये आपका बहुत आभार ।
आदरणीय खुर्शीद भाई , रचना को आपसे मिला अनुमोदन मेरे उत्साह दो गुना कर दिया है । आपकी सराहना के लिये दिली शुक्रिया।
आदरणीय श्याम नारायण भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका अभारी हूँ ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत शुक्रिया ।
आदरणीय गिरिराज भंडारी सर इस सुन्दर रचना से बचपन की याद ताज़ा हो गयी , और ये पंक्तियाँ
वैसे तो आप स्वतंत्र हैं
अपनी झोली में कुछ भी समेटने के लिये
फूल , कांटे , पत्थर कुछ भी.......चिंतन पर मजबूर कर देतीं है ! हार्दिक बधाई , सादर !
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online