१२२२—१२२२—१२२२
उमंगों के चरागों को बुझाओ मत
उजाले को अँधेरों से डराओ मत
न फेंको तुम इधर कंकर तगाफ़ुल का तगाफ़ुल= उपेक्षा
परिंदे हसरतों के यूं उड़ाओ मत
उठाकर एड़ियाँ ऊँचे दिखो लेकिन
तुम इस कोशिश में कद मेरा घटाओ मत
चले आओ हर इक धड़कन दुआ देगी
सताओ मत सताओ मत सताओ मत
सजाओ आइने दीवार में लेकिन
हक़ीक़त से निगाहें तुम चुराओ मत
बजाओ तालियाँ पोशाक पर उनकी
मगर उर्यां दिखे तो मुस्कुराओ मत
यहाँ हर आँख में नमकीन आँसू हैं
किसी को ज़ख्म दिल के तुम दिखाओ मत
असीरी में अँधेरे की है मेरा गाँव
शिवाले क़ुमक़ुमों से तुम सजाओ मत क़ुमक़ुमा = बल्ब\लट्टू
लतीफ़े मंच की शोभा बढ़ाते हैं
ग़ज़ल ‘खुरशीद’ जी तुम गुनगुनाओ मत
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
आदरणीय राहुल जी मैं आपकी टिप्पणी नहीं पढ़ पाया, किंतु मेरे इनबॉक्स में आपकी हार्दिक स्वागत है |सादर
आदरणीय उमेश कटारा जी राम आश्रय जी ,हृदयतल से आभार |सादर
आदरणीय सौरभ सर ,गोपालनारायण सर , आप जैसे महानुभवों की रचना पर उपस्थिति , मुझे ऊर्जावान बनाती है |आशीर्वाद बनाये रखियेगा |सादर
बहुत सुन्दर
आदरणीय राहुल भाई , बुरा न माने तो एक बात कहना चाहता हूँ । किसी भी रचना कार की रचनाओं में उसकी रचना से संबंधित प्रतिक्रियायें ही देनी चाहिये । अन्यथा प्रश्न - उत्तर के लिये बहुत सी ज़गह मंच में हैं । आप इन बोक्स मे मेसेज कर के भी पूछ सकते हैं , गज़ल के लिये गज़ल की कक्षा , ग़ज़ल ली बातें मे, आपको शंका स्माधान के लिये स्थान है , ऐसे ही अन्य पाठों मे भी है । किसी की रचना के अन्य बातें करना उसकी रचना का उचित सम्मान नहीं है । मै अपनी इस बात को भी डिलिट कर दूंगा , आपके देख लेने के बाद ।
॥ सादर निवेदन ॥
अब क्या मिसाल दूं मैं तुम्हारे शबाब की ----शब्दातीत i लाजवाब i
बधाई हो । अपने बहुत ही प्यार भरे शब्दों से मन को छुआ है
आदरणीय राहुल साहब सादर आभार |स्नेह बनाये रखियेगा |
आदरणीय सोमेश कुमार जी , आदरणीय अजय शरमा जी ,आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब , ग़ज़ल पर उपस्तिथि और ज़र्रानवाज़ी का तहेदिल से शुक्रिया |मुहब्बत बनाये रखियेगा |सादर
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