For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा : सोशल स्टडी (गणेश जी बागी)

रसात के दिन थे, शहर के एक नामी कॉलेज के छात्रों की टीम सुदूर गाँव में सोशलस्टडी हेतु आयी हुई थी. गरीब दास की झोपडी के पास टीम ज्योही पहुँची कि जोरदार बारिश प्रारम्भ हो गई और पूरी टीम बारिश से बचने के लिए झोपड़ी में घुस गयी. टिन की चादर और फूंस की बनी झोपड़ी कई जगह से टपक रही थी तथा प्लास्टिक के खाली डिब्बे और एलुमिनियम के बर्तन टपकते पानी के नीचे रखे हुए थे, यह देख टीम के सदस्य गंभीर चर्चा में लग गये, खैर बारिश रुकी और टीम वापस चली गयी .

स्टडी रिपोर्ट में गाँव, गलियां, गाय, गोबर, गेहूं, खेत, खलिहान, किसान, नदी, कुआँ इत्यादि के बारे में जिक्र के साथ एक बात प्रमुखता के साथ लिखी गयी.

“गाँव की झोपड़ियों में ‘रेन वाटर हार्वेस्टिंग’ का विशेष प्रावधान किया गया था”

(मौलिक व अप्रकाशित)
पिछला पोस्ट => लघुकथा : गैरत

Views: 1187

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 3, 2015 at 8:01pm

 आदरणीय बागी जी. यह आज की भौतिकता ही तो है, जो युवा वर्ग को सिर्फ किताबी कीड़ा बनाए जा रही है,संवेदनशीलता से कोसो दूर. बस! सीधे परिणाम को लक्ष्य बना रखा है आजकल के युवाओं ने..बहुत-बहुत बधाई, लघुकथा पर आदरणीय बागी जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 3, 2015 at 6:45pm

गरीबी , मजबूरी को बिना ख़ुद गरीब , मजबूर हुये दूर से कोई नही जान सकता , फिर ये बच्चे को सोने का चम्मच लिये पैदा हुये लगते हैं , कहाँ जान पाते । आज की शिक्षा व्यवस्था पर भी बढिया व्यंग्य है । बधाई , आदरणीय बागी भाई जी ।

Comment by kanta roy on February 3, 2015 at 1:54pm
शहर के नामी काॅलेज के छात्र समस्त भौतिकता का अध्ययन तो कर बैठे लेकिन गरीब की झोपड़ी के टपकते पानी का मर्म ना जान पाये ।सब देखा वही ना देखा जो देखने योग्य था ।समाज में आज के युवा वर्ग यथार्थ से दूर दिखावे की दुनिया में ऐसे लिप्त हुए है कि जहाँ जमीनी हकीकत का कोई वास्ता नहीं । आ. बागी जी सदा की तरह लाजवाब है आपकी यह रचना भी । आभार

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:31am

आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, आपकी समीक्षात्मक और विस्तृत टिप्पणी पढ़ मन प्रसन्न है, ऐसा लग रहा है कि लघुकथा सार्थक हो गयी, बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:30am

प्रिय सोमेश जी, लघुकथा की आत्मा तक आप पहुँच सके और उस पर तार्किक रूप से प्रतिक्रया व्यक्त की इसके लिए बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:28am

आदरणीया डॉ प्राची जी, एक लम्बे अंतराल के पश्चात इस लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी दोनों हर्षकारी हैं, इस उत्साहवर्धन और प्रोत्साहन हेतु बहुत बहुत आभार.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 3, 2015 at 11:26am

आदरणीया डिम्पल गौर जी, लघुकथा पर आपकी उपस्थिति और सराहना मुग्धकारी है बहुत बहुत आभार.

Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 10:12am

आदरणीय बागी सर , शानदार लघुकथा हुई है |वास्तविकता  को  उजागर करता करारा व्यंग्य है |सादर अभिनन्दन |

Comment by vandana on February 3, 2015 at 7:17am

बहुत २ बधाई आदरणीय शानदार लघुकथा ....

रिजल्ट्स की मनी बैक गारंटी देने वाले स्कूल प्रोडक्ट तो ऐसी ही रिपोर्ट देंगे

वैसे भी परिणाम आधारित मानसिकता संवेदना को हास्यास्पद ही मानती है लगता है उच्च स्तरीय भावनायें तो साहित्य के पन्नों  पर ही सिमट कर रह जायेंगी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on February 3, 2015 at 12:56am
मैं चमत्कृत हूँ आदरणीय बागी जी आपकी यह रचना पढ़कर. शैक्षणिक दीनता और चारित्रिक कदर्यता से किस तरह ग्रस्त है आज का हतभाग्य समाज उसका उत्कृष्ट चित्रण है आपकी यह रचना....झकझोर देने वाली है किंतु भाषा के प्रयोग में स्थितप्रज्ञ....यहीं इसकी सार्थकता है....अनेक साधुवाद.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"दोहावली***आती पूनम रात जब, मन में उमगे प्रीतकरे पूर्ण तब चाँदनी, मधुर मिलन की रीत।१।*चाहे…"
7 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-176
"स्वागतम 🎉"
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२ * कथा निर्धनों की कभी बोल सिक्के सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के।१। * महल…See More
Thursday
Admin posted discussions
Tuesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 169

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी "
Monday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई, बह्र भी दी जानी चाहिए थी। ' बेदम' काफ़िया , शे'र ( 6 ) और  (…"
Sunday
Chetan Prakash commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"अध्ययन करने के पश्चात स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है, उद्देश्य को प्राप्त कर ने में यद्यपि लेखक सफल…"
Jul 6

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on PHOOL SINGH's blog post यथार्थवाद और जीवन
"सुविचारित सुंदर आलेख "
Jul 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत सुंदर ग़ज़ल ... सभी अशआर अच्छे हैं और रदीफ़ भी बेहद सुंदर  बधाई सृजन पर "
Jul 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
Jul 3

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service