दोपहर में घंटी बजने पर उसने दरवाजा खोला तो वो दरिंदा जबरदस्ती अंदर घुस आया और उसकी अस्मिता को तार तार कर गया | अब शरीर तो जिन्दा बच गया लेकिन आत्मा बुरी तरह लहूलुहान थी | एक ऐसा हादसा जिसके लिए जिम्मेदार वो नहीं थी लेकिन भुगतना उसी को था |
पति ने आने पर जब सँभालने की कोशिश की तो उसे झटक कर वह जोर से रो पड़ी , शायद अब वो किसी पुरुष पर भरोसा नहीं कर पाएगी | एक वहशी की गलती की सज़ा अब पूरे पुरुष समाज को भुगतनी होगी |
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मौलिक एवम अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत आभार आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी .
ऐसे विषय में रचना करना जोखम का काम है , मगर रचना में अक्सर वो ही विचार आते है , जो हमारे आस पास होते है , रचना को वो हिस्सा भी होना चाहिए , जिस की बदोलत सब कुह होता , बाकी रचना के लिए धन्यवाद
बहुत बेहतर लघुकथा, आदरणीय विनय जी. हार्दिक बधाई
बहुत बहुत आभार आदरणीय विश्व राज राठोड जी ..
बहुत बहुत आभार आदरणीय गणेश जी बागी जी..
बहुत बहुत आभार आदरणीय डॉ विजय शंकर जी , कभी कभी किसी को बिना किसी गलती के भी सजा भुगतनी पड़ती है और कभी कभी किसी एक की गलती की सजा पूरा समाज भुगतता है..
अच्छी लघुकथा, सन्देश स्पष्ट है, बधाई आदरणीय विनय कुमार जी.
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