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मेरी पलकों को......

मेरी पलकों को......एक रचना 

मेरी पलकों को अपने ख़्वाबों की  वजह दे दो
अपनी साँसों में  मेरे जज़्बातों को जगह दे दो

जिसकी  नमी  तुम ये  दामन सजाये बैठी हो
उसके  रूठे  सवालों को जवाबों में जगह दे दो

बंद हुआ  चाहती हैं  अब थकी हुई पलकें मेरी

अपनी तन्हाई में रूहानी रातों  को जगह दे दो 


ये ज़िंदगी तो गुज़र जाएगी तेरे हिज्र के सहारे 

इन हाथों में कुछ रूठे हुए वादों को जगह दे दो

कल का वादा न करो  कि अब न कल आएगा
अपने रुख़्सार पे पिघले लम्हों को जगह दे दो

सुशील सरना

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Comment

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Comment by Sushil Sarna on February 17, 2015 at 12:44pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी गीतिका और ग़ज़ल विषय पर आपके ज्ञानवर्धक विचारों ने मेरे भ्रम को दूर किया है। आपके इस मार्ग दर्शन का तहे दिल से शुक्रिया। वो साइट आदरणीय प्रो विश्वम्भर शुक्ल जी द्वारा संचालित मुक्तक लोक है जिसमें गीतिका के बारे में कुछ इसी प्रकार से लिखा गया है :-गीतिका के सम्बन्ध में :-------------------------गीतिका क्या है ?``````````````*(1) गीतिका ग़ज़ल जैसी अवश्य है किन्तु यह अनिवार्यत: ग़ज़ल ही नहीं है ( 2) हर गज़ल गीतिका है किन्तु हर गीतिका गज़ल नही है l (3) मेरा अभिमत है कि गज़ल उर्दू की काव्य-विधा है जो निर्धारित उर्दू कविता के नियमों से संचालित होती है l हिन्दी में गीतिका उर्दू की गज़ल जैसी लगती अवश्य है किन्तु इसे गज़ल कहना उचित नहीं है l इसके शिल्प में पर्याप्त लचीलापन है !(4) गीतिका गज़ल की मौसेरी बहन है और कुछ मनचली भी है अर्थात उर्दू के नियम कायदों से अनिवार्यतः बंधी नही है l( 5) गीतिका पुराना गीतिका या हरिगीतिका छंद भी नही है .(6) पूर्णत: गेयता,लयात्मकता ,समान मात्रा भार और सुन्दर भावों का मुक्त प्रवाह लिए निर्झरिणी है गीतिका l (7) इसमें कम से कम पाँच युग्म अवश्य हों .पहले युग्म की दोनों पंक्तियाँ समांत पर और बाद के प्रत्येक युग्म की दूसरी पंक्ति का समांत प्रथम युग्म के समान्त जैसा ही होगा जबकि पहली पंक्ति अतुकांत होगी l प्रत्येक युग्म की अभिव्यक्ति स्वतंत्र होगी !

खैर आदरणीय सौरभ जी आपके द्वारा प्रदत जानकारी मेरे लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है। कोशिश करूँगा कि आपके मापदंडों को अपना कर मैं अपनी प्रस्तुतियों को प्रस्तुत करूँ। और एक बात यदि उपरोक्त संदर्भ में मेरी प्रस्तुति के सुधार के बारे में मार्गदर्शन करें तो मैं आपका आभारी रहूंगा। आपने अपना बहुतमूल्य समय दिया , इसके लिए आपका हार्दिक आभार।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 16, 2015 at 10:07pm

//आदरणीय इस विधा को किसी साइट संचालक के द्वारा गीतिका के नाम दिया गया है लेकिन इसमें ग़ज़ल की तरह नियम का बंधन नहीं होता केवल युग्म होते हैं। मैं उसी के अनुरूप अपनी प्रस्तुति बना रहा हूँ। //

आप अवश्य ही किसी भ्रम में हैं आदरणीय.
गीतिका ग़ज़ल का ही हिन्दी प्रारूप है. इसके अंतर्गत ग़ज़ल के कुछ अति विशिष्ट विन्दुओं को छोड़ कर बहर सहित अन्य सभी नियमों का शिष्टवत निर्वहन किया जाता है. अर्थात ग़ज़ल की मूलभूत नियमावलियाँ बनी रहती हैं. ’गीतिका’ को लेकर ऐसा ही मैंने समझा है.
आप जिसे ’किसी साइट’ कह रहे हैं, वह संभवतः आदरणीय ओम नीरवजी की साइट हो सकती है. हो सकता है, उनके अलावा भी किसी ने इस प्रारूप को अपना लिया होगा. उपर्युक्त तथ्य के अलावा इस विषय पर कोई और मान्यता अन्यथा मान्यता ही होगी, अथवा वह कोई व्यक्तिगत आग्रह होगा, साहित्य के पटल पर जिसकी कोई स्वीकार्यता नहीं हो सकती.

कहते हैं, ग़ज़ल के लिए ’गीतिका’ का प्रयोग संभवतः गीतकार नीरज ने पहली बार किया था.
अतः, गीतिका में सिर्फ़ युग्म होते हैं जैसे मंतव्य को स्वीकार करना सहज ही गले नहीं उतरता.
 
हाँ, हिन्दी कविताओं में द्विपदियों का चलन है. लेकिन वे तथाकथित क़ाफ़िया और रदीफ़ का निर्वहन नहीं करतीं, जैसा कि आपने ’निभाने’ का प्रयास किया है.
सादर

Comment by Sushil Sarna on February 16, 2015 at 9:09pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी नमस्कार - प्रस्तुत रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा एवं मार्गदर्शन का हार्दिक आभार। आदरणीय मैं प्रस्तुत रचना पर दी गयी प्रतिक्रिया की गहनता और अभिप्राय को समझ रहा हूँ। ऐसी विधा को मैं ग़ज़ल के नियमों में बाँध कर क्यों नहीं लिख रहा। आदरणीय इस विधा को किसी साइट संचालक के द्वारा गीतिका के नाम दिया गया है लेकिन इसमें ग़ज़ल की तरह नियम का बंधन नहीं होता केवल युग्म होते हैं। मैं उसी के अनुरूप अपनी प्रस्तुति बना रहा हूँ। नियमों की अवहेलना मैं कभी नहीं कर सकता। अगर जाने अनजाने में मेरे से कोई त्रुटि हुई हो तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ तथा भावी मार्गदर्शन के लिए अनुरोध करता हूँ। धन्यवाद। 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 16, 2015 at 5:01pm

भाव अच्छे हुए हैं, आदरणीय सुशील भाई.

लेकिन ऐसे माध्यमों के अपने विशिष्ट नियम हुआ करते हैं. यह मंच इसी क्रम में तत्परता से कार्यशील है.

इस ओर सचेत और संवेदशील रहने की आवश्यकता है.

सादर

Comment by Sushil Sarna on February 16, 2015 at 4:47pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 16, 2015 at 4:47pm

आदरणीय गिरिराज भंडारी  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 16, 2015 at 12:22pm

बहुत सुंदर लिखा, आदरणीय सरना जी. पढ़कर मन को बहुत अच्छा लगा. प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई लीजिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 15, 2015 at 9:03pm

आदरणीय सुशील भाई , बहुत सादगी भरी मांग है आपकी , बहुत सुन्दर !! हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Sushil Sarna on February 15, 2015 at 6:45pm

आदरणीय  umesh katara  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

Comment by Sushil Sarna on February 15, 2015 at 6:45pm

आदरणीय हरी प्रकाश दूबे  जी रचना पर आपकी स्नेहिल प्रशंसा का हार्दिक आभार। 

कृपया ध्यान दे...

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