जीवन का ताना
अकेला उदास डोलता रहा
बाना कहाँ मिला
बुनने को
सच के ताने को
झूठे बानों से
बुनते रहे
एक जख्मी चादर
फरेब के सर पर ओढ़ा
सब्र के कारवाँ चलते रहे
जीने की रिवायत से
समझोता करते रहे
बिन प्यार की
बेरंग चादर ओढ़े
मुखोटों की मुस्कुराहटों का
दम भरते रहे
काश बाना
प्यार की सच्चाई से
खिलता कोई
तो एक सतरंगी चदरिया
बुन लेता
और बस सो जाता चैन से
ओढ़ कर वो
प्यार की सतरंगी चादर
.
मोहन सेठी 'इंतज़ार'
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
अति सुन्दर ! बधाई।
somesh kumar जी आभार ...आप ने सही लिखा है "फिर भी अंतिम साँस तक ...बंधन निभाते जाना "
जितेन्द्र पस्टारिया जी बहुत बहुत धन्यवाद ....शुभकामनाएँ
आदरणीया Pari M Shlok जी आभार ....(समझौता ..मुखौटों) को ठीक कर दूंगा अभी इसलिए नहीं कर रहा क्यूंकि ये फिर approval के लिये चली जाएगी !
जीवन का ताना बाना
ना जाना ना पहचाना
फिर भी अंतिम साँस तक
बंधन निभाते जाना |
वाह! बहुत उत्तम रचना रची आपने आदरणीय मोहन जी. बहुत-बहुत बधाई
आदरणीय:..
Hari Prakash Dubey जी ,
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,
मिथिलेश वामनकर जी ,
Sushil Sarna जी
आप सभी का आभार सराहना के लिये तथा मार्गदर्शन के लिये ...(जल्दी संशोधन कर दूंगा ..मिथिलेश वामनकर जी धन्यवाद बताने के लिये)
काश बाना
प्यार की सच्चाई से
खिलता कोई
तो एक सतरंगी चदरिया
बुन लेता
और बस सो जाता चैन से
ओढ़ कर वो
प्यार की सतरंगी चादर
बहुत ही सुंदर प्रवाहमयी रचना बन पड़ी है आदरणीय Mohan Sethi जी। आदरणीय वामनकर जी की टिप्पणी से सहमत। इस सुंदर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
आदरणीय मोहन जी इस सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई... कुछ टंकण त्रुटियों पर ध्यानाकर्षित करते हुए संशोधन हेतु निवेदन है
समझोता मुखोटों
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