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बुरे की कर बुराई अब (बुरे को अब बुरा कह कर) बुराई कौन लेता है
यहाँ रूतबे के लोगों से सफाई कौन लेता है
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हँसी अती है लोगों को किसी की आँख नम हो तो
किसी की पीर हरने को बिवाई कौन लेता है
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सभी हम्माम में नंगे किसे क्या फर्क पड़ता अब
जमाना भी न देखे जगहॅसाई कौन लेता है
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मुखौटे ओढ़कर अब तो दिलो का राज रखते सब
सच्चाई कौन देता है सच्चाई कौन लेता है
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मिले आशीष बूढ़ों का नहीं इससे बड़ी नेमत
मगर इसको बताओ मुँहदिखाई कौन लेता है
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बचा लेती है जाँ देकर हमेशा लाल को अपने
कहो माता के जैसा तुम बलाई कौन लेता है
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एक हसगुल्ला
सुनो ससुराल वालो तुम जमाना अब लफंगो का
जवाँ गर शालियाँ हों तो लुगाई कौन लेता है
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मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आ0 भाई गिरिराज जी, गजल पर उपस्थिति से मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 भाई सोमेश जी प्रशंसा के लिए आभार ।
आ0 भाई श्यामनारायण जी, उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 पारी जी गजल की प्रशंसा और टंकन की त्रुटि की और ध्यान दिलाने के लिए आभार ।
आ0 भाई विजय शंकर जी, गजल पर उपस्थिति से मान बढ़ाने के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 भाई दिनेश जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
आ0 भाई मिथिलेश जी गजल पर विस्तार से प्रतिक्रिया और अमूल्य सुझाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद । आपके द्वारा दिए गये सुक्षावानुसार देखने से गजल में और निखार आ गया है । सहृदयता से दिए सुझावों को धृष्ठता कहकर उनका महत्व कम मत कीजिए । परिवार के सदस्यों में सुझावों से ही आपसी प्रेम झलकता है । इस गजल के जरिए आपका भी कुछ अभ्यास हो गया है तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है । हसगुल्ले पर आपका प्रतिक्रियात्मक शेर लाजवाब है ।
बस मुखौटे ओढ़कर अब तो दिलो का राज रखते सब..... में प्रदत्त सुझाव को स्वीकारने पर मुझे कहन का मूल उददेश्य कम होता लग रहा है । इस का मूल भाव यह है कि अब निष्कपट व्यक्ति भी मुखौटा ओढ़ने को विवश है क्योंकि उसकी निष्कपटता को भी उसकी मूर्खता समझकर उसका वेजा लाभ उठाया जाता है या फिर फॅसा दिया जाता है । इसलिए वह भी सच कहने से कतराता है । इसलिए इसमें सब शब्द का प्रयोग किया गया है । प्रथमःतया जो पढ़ने पर असंगत सा लगता है । पर व्यापकता में इसे देखेंगे तो मूलभाव समझझने में सहजता हो जाएगी । बहुमूल्य सुझावों के लिए पुनः हार्दिक धन्यवाद , सादर......
आ0 भाई गोपालनाराण जी आपकी उपस्थिति से धन्य हुआ स्नेह बनाए रखें .....
आ0 भाई हरिप्रकाश जी गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद । बुरे की कर बुराई अब ;बुरे को अब बुरा कह करद्ध लिखने का तात्पर्य यह था कि दोनों में से कौन अधिक उपयुक्त लग रहा है यह सुझाइए न कि समझाने के लिए। धन्यवाद ।
आदरणीय लक्ष्मण भाई , खूब सूरत मतला और खूब सूरत गज़ल के लिये हार्दिक बधाइयाँ ॥
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