2122 2122 2122
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डूबता हो सूर्य तो अब डूब जाए
मत कहो तुम रोशनी से पास आए /1
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एक अल्हड़ गोद में शरमा रही जब
चाँद से कह दो नहीं वह मुस्कुराए /2
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थी कभी मैंने लगायी बोलियाँ भी
मोलने पर तब न मुझको लोग आए /3
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आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर
व्यर्थ अब बाजार जो कीमत लगाए /4
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कामना जब मुक्ति की थी खूब मुझको
बाँधने सब दौड़ कर नित पास आए /5
रास आया है मुझे जब आज बंधन
लोग क्यों हैं इस तरह से तिलमिलाए/6
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है मेरी निजता इसे मत भंग करना
छाँव देते जब मुझे ये केश भाए /7
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इसलिए अब द्वार आए मुक्ति भी तो
चाहता हूँ बिन पुकारे लौट जाए /8
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देखना जब चाहता था स्वप्न मीठे
वक्त आया धंुध की चादर उठाए /9
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हर तरफ बरसात थी जब आसुओं की
मुश्किलों से भीगते आँचल सुखाए /10
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हो गया अब छाँव में साकार सपना
सूर्य से बोलो अधिक मत तमतमाए /11
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मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आज मैं अनमोल हूँ बेमोल बिक कर
व्यर्थ अब बाजार जो कीमत लगाए-----बहुत खूब उम्दा
हर तरफ बरसात थी जब आसुओं की
मुश्किलों से भीगते आँचल सुखाए ----वाह्ह्ह्ह
बढ़िया ग़ज़ल कही है लक्ष्मण भैय्या बहुत- बहुत बधाई.
हर तरफ बरसात थी जब आसुओं की
मुश्किलों से भीगते आँचल सुखाए /10
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हो गया अब छाँव में साकार सपना
सूर्य से बोलो अधिक मत तमतमाए /11
आदरणीय लक्ष्मण साहब उम्दा ग़ज़ल हुई है |सादर अभिनन्दन |
आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' साहब
/डूबता हो सूर्य तो अब डूब जाए
मत कहो तुम रोशनी से पास आए/ शानदार....बधाई शानदार !
आदरणीय धामी जी
सुन्दर रचना i सादर i
आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
कुछ-कुछ दुष्यंत कुमार की गजलों वाला अंदाज़ लग रहा है |बधाई
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