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जिन्दगी थी बहुत ही सुहानी मेरी
मौज मस्ती कभी थी निशानी मेरी
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एक ज़लसा हुआ था मेरे गाँव में
मिल गयी उसमें परियों की रानी मेरी
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सिलसिला चल पडा फिर मुलाकात का
मुझको लगने लगी जिन्दगानी मेरी
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बात अबकी नहीं है मेरे दोस्तो
ये कहानी बहुत ही पुरानी मेरी
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एक साज़िश रची थी रक़ीबों ने फिर
और साज़िश में शामिल दिवानी मेरी
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मैं तो मरने लगा था मेरी जान पर
ये हकीकत भी उसने न जानी मेरी
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एक बारात आई मेरे गाँव में
हो गयी जिन्दगी पानी-पानी मेरी
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घास उगने लगी है मेरी कब्र पर
दास्तां बन चुकी है कहानी मेरी
उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
Saurabh Pandey जी आभार
khursheed khairadi जी आभार
डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आभार
maharshi tripathi जी आभार
gumnaam pithoragarhi जी आभार
Hari Prakash Dubey जी आभार
घास उगने लगी है मेरी कब्र पर
दास्तां बन चुकी है कहानी मेरी ....सुन्दर रचना आदरणीय उमेश कटारा जी , बधाई आपको !
उमेश जी ,उम्दा ग़ज़ल हुई है ,,,,, बधाई स्वीकारें.................
क्या बात है!!!!मार्मिक वर्णन किया है आपने आ. उमेश कटारिया जी,,,हार्दिक बधाई |
भाई जी
आपकी अन्य गजले कटार है तो इसे कटारा कहेंगे i बहुत रवानी है इन शेरो में i प्रवाह है , गति है , सारल्य है i चूंकि दास्ताँ और कहानी लगभग पर्यायवाची है इसलिये आ० सौरभ जी की सम्मति पर ध्यान अवश्य दें i सादर i
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