प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं.....
प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं
प्रेम धरा है प्रेम गगन है
प्रेम मिलन है प्रेम विरह है
श्वास श्वास का प्रेम बंधन है
प्रेम ईश है प्रेम है पूजा
स्मृति घाट का प्रेम मधुबन है
पावन गंगा सा प्रेम समेटे
लिप्त बूंदों में प्रेम नयन है
मौन अधरों में गुन गुन करता
प्रेम में डूबा प्रेम कम्पन है
आत्मसात का भाव समेटे
प्रेम हकीकत प्रेम स्वप्न है
प्रेम अलौकिक अपरिभाषित
हृदय नयन का प्रेम अंजन है
प्रेम तृप्ति है प्रेम प्यास है
मन के बन में प्रेम यौवन है
प्रेम आदि है प्रेम अंत है
इस सृष्टि का प्रेम सृजन है
प्रेम में डूबा हर कण कण है
प्रेम पुष्प है प्रेम चुभन है
प्रेम समर्पण का तपोवन है
प्रेम दीप है प्रेम है मन्दिर
प्रभु चरणों का प्रेम वन्दन है
सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित
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प्रेम अगन है प्रेम लगन हैं
प्रेम धरा है प्रेम गगन है
प्रेम मिलन है प्रेम विरह है
श्वास श्वास का प्रेम बंधन है
प्रेम ईश है प्रेम है पूजा
स्मृति घाट का प्रेम मधुबन है
आदरणीय सुशील सरना साहब ,प्रेममय सुन्दर कविता है ,हर पंक्ति में प्रेम का नया रंग है |इस प्रेमासिक्त सुन्दर रचना हेतु आपको प्रेमपगी बधाई |सादर अभिनन्दन |
पावन गंगा सा प्रेम समेटे
लिप्त बूंदों में प्रेम नयन है........बहुत खूब आ.सुशिल जी |
आदरणीय सुशील भाई , प्रेम बहुत सुन्दर परिभाषित हुआ है , लाजवाब ! हार्दिक बधाइयाँ । पंक्तियों मे मात्रा का संयोजन हो जाता तो पढ़्ने मे और भी आनंद आता ॥
सुन्दर प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई
आदरणीय सुशील सरना सर ,प्रेम को परिभाषित करती इस सुन्दर रचना पर आपको हार्दिक बधाई ! सादर
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