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एक हिन्दुस्तानी औरत की सीमायें ... सुन्दर सुघड़ रचना! व्यंग्य, भी गर्व भी अभिनन्दन !
इस रचना की अंतिम पंक्ति ही इसका सार है जो रचना को उंचाइयां देती है ...बहुत सुन्दर वाह ...आपकी पहली रचना पढ़ी आगे भी लिखती रहिये |हार्दिक बधाई परी जी
आपको पढ़ना हमेशा से ही सुकून देता है..obo से मै आपके माध्यम से ही परिचित हुआ हूँ..आपका बहुत बहुत आभार!
लाजवाब रचना आदरणीय परी ऍम श्ल्लोक जी ........सच कहा आपने....
कितनी तरकीब हैं आदमी के पास
अपने आपको सुकून पहुँचाने के लिए
मगर.........
हाँ! मुझे अक्सर ये याद रहता है
कि मैं एक हिंदुस्तानी औरत हूँ !!!.......
जहाँ आदमी अपने शौक के लिए कई बहाने तलाश कर लेता है वहां औरत मान मर्यादा के सम्मुख अक्सर अपने आप में ही घुटती रहती है !
आदरणीया परी जी, सुन्दर प्रस्तुति है |सादर अभिनन्दन |
बहुत सुंदर लिखा, आपने आदरणीय. बधाई
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