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मैं एक हिंदुस्तानी औरत हूँ - परी ऍम. 'श्लोक'

आदमी क्या खूब कोशिश करते हैं
गम मिटाने के लिए...
ले कर जाम हाथों में अपने
रोज़ कहते हैं
कि वो टूटे हैं बिखरे हैं बेहाल बेहद हैं
रोज़ कहते हैं
करता हूँ नशा सबकुछ भूल जाने के लिए
फूंकता हूँ सिगरेट हर फ़िक्र धुंए में उड़ाने के लिए
सोचती हूँ कि
कितनी तरकीब हैं आदमी के पास
अपने आपको सुकून पहुँचाने के लिए
मगर
मेरे पास अपने दर्द में असीर रहने के सिवा
कोई राह राहत की नज़र नहीं आती
मैं ये शौक भी अता नहीं फरमा सकती
हाँ! मुझे अक्सर ये याद रहता है
कि मैं एक हिंदुस्तानी औरत हूँ !!!

सर्वाधिकार सुरक्षित : परी ऍम.'श्लोक'

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by Pari M Shlok on February 25, 2015 at 10:21am
सभी गुनीजन मित्रो की टिप्पणी का स्वागत व बहुत बहुत आभार !!
Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 10:14am

आदरणीया परी ऍम. 'श्लोक' जी सुन्दर रचना, हार्दिक बधाई आपको ,सादर !


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on February 25, 2015 at 1:39am

आदरणीया परी जी इस सुन्दर रचना पर बहुत बहुत बधाई

Comment by ajay sharma on February 24, 2015 at 10:23pm

bahut sateek , bebak ,,,bilkul saaf -ssaf pesh ki hai apne ik aam hindustani aurat ka dard aur uski becharigi ... 

Comment by maharshi tripathi on February 24, 2015 at 10:17pm

आ.पारी एम जी ,,,,सुन्दर रचना हेतु आपको बधाई ,,,,,,

Comment by Pari M Shlok on February 24, 2015 at 12:43pm
आपका बेहद शुक्रिया ...Shyam Narain Verma जी
Comment by Shyam Narain Verma on February 24, 2015 at 12:41pm
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई
Comment by Pari M Shlok on February 24, 2015 at 12:17pm
बेहद आभारी हूँ आपकी ..डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी !!
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 24, 2015 at 12:12pm

आ 0 परी ऍम.'श्लोक' जी

बहुत सुन्दर नजरिया आपने पेश किया  i आपको बधाई i

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