सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू
दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू
इस जिन्दगी की राह में दुश्वारियाँ बहुत
रहबर का हाथ छोड़ न रिश्तों को तोड़ तू
मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू
जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू
मन की खुशी मिलेगी, तू यह नेक काम कर
टूटे हुए दिलों को किसी तर्ह जोड़ तू
दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है
अब छोड़ भी 'दिनेश' ये दौलत की होड़ तू
-- दिनेश कुमार ०१/०३/२०१५
( मौलिक व अप्रकाशित )
Comment
आ० दिनेश जी
मतले से मक्ता तक गजब है i वाह i सुन्दर i
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