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ग़ज़ल -- सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू

सब कुछ न आज आदमी किस्मत पे छोड़ तू
दरिया की तेज धार को हिम्मत से मोड़ तू

इस जिन्दगी की राह में दुश्वारियाँ बहुत
रहबर का हाथ छोड़ न रिश्तों को तोड़ तू

मेहनत के दम पे आदमी क्या कुछ नहीं करे
अपने लहू का आखिरी कतरा निचोड़ तू

जो कुछ है तेरे पास वही काम आएगा
बारिश की आस में कभी मटकी न फोड़ तू

मन की खुशी मिलेगी, तू यह नेक काम कर
टूटे हुए दिलों को किसी तर्ह जोड़ तू

दो गज कफन ही अंत में सबका नसीब है
अब छोड़ भी 'दिनेश' ये दौलत की होड़ तू

-- दिनेश कुमार ०१/०३/२०१५

( मौलिक व अप्रकाशित )

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Comment by मिथिलेश वामनकर on March 1, 2015 at 6:05pm
बह्र? वज़्न?
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 1, 2015 at 1:24pm

आ० दिनेश जी

मतले से मक्ता तक  गजब है i वाह i  सुन्दर i

कृपया ध्यान दे...

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