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"नया रेट"
"जीजी कहाँ हो?" कहती हुयी देवरानी रसोईघर में आ गयी और मुझे बरतन माँजते देख झट बोल पड़ी। "अरे जीजी, क्या हुआ? काम वाली नही आयी।
बस मैं भी शुरू हो गयी। "अरे होना क्या है नीलु। वही मुआ बजट का रोना।" "रसोई के खर्चे,स्कूली फीसे,बिजली-पानी अब सब पर तो बजट का असर पड़ जाता है ना और बच्चो का जेब खर्च अलग से।" नीलु को बात से सहमत देख मैंने अपनी बात जारी रखी। "अब 'इन्होने' तो खर्चा बढ़ाने से मना कर दिया।" "बस सोचा, कामवाली को ही मना कर देती हूँ। टाईम भी पास हो जायेगा और घर का बजट भी........।"
"हाँ ठीक ही तो है जीजी। अच्छा मैं चलूं, बेकार तंग किया आपको।" मेरी बात बीच में ही काटकर नीलु चलने लगी।
"अरे सुन तूने अपना बजट कैसे 'मैनटेन' किया है?" मैंने भी उस पर सवाल दाग दिया।
"अरे जीजी, मुझे इसकी जरूरत नही। मेरे 'ये' बता रहे थे कि उन्होने कल ही आफिस में पार्टियो को अपना 'नया रेट' बता दिया है।" मेरी बात का जबाब में ईट सी मारकर देवरानी जा चुकी थी और मैं अपने हाथो में घुलती 'विम बार' को देखती रह गयी।
'विरेन्दर वीर मेहता' (मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 3, 2015 at 5:57pm

आदरणीय डॉ विजय शंकर जी लघु कथा पर अपने अमूल्य विचार रखने के लिए आप का हार्धिक आभार प्रकट करता हूँ .... " वैसे ये सत्य भी है की वर्तमान में महंगाई और भ्रस्टाचार आपस में एक दुसरे से रेस ही लगा रहे है."

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on March 3, 2015 at 5:53pm

आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी  और सोमेश कुमार जी आप को कथा पसंद आई., धन्यवाद ! कथा पर अपनी प्रतिकिर्या देने के लिए आप सुधिजनो का हार्धिक आभार.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 3, 2015 at 5:48pm

आदरणीय , बढ़िया लघु कथा लगी , आपको बधाइयाँ ।

Comment by maharshi tripathi on March 3, 2015 at 4:56pm

आपकी लघुकथा पर आपको हार्दिक बधाई आ.वीरेंदर जी |

Comment by Hari Prakash Dubey on March 3, 2015 at 2:36pm

आदरणीय वीरेंद्र मेहता जी सुन्दर लघुकथा है ,"उन्होने कल ही आफिस में पार्टियो को अपना 'नया रेट' बता दिया है।" यह पंक्ति ही सारी कथा को बखूबी बयाँ कर रही है , बधाई आपको ! सादर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 3, 2015 at 11:13am
लखु-कथा अच्छी है, भ्रस्टाचार मंहगाई बढ़ाता है या मंहगाई भ्रस्टाचार , या दोनों एक दूसरे से रेस लगा रहे हैं।
आदरणीय वीरेंद्र मेहता जी बधाई , सादर।
Comment by somesh kumar on March 3, 2015 at 11:03am

सही कहा भाई जी .महंगाई के साथ भ्रस्टाचार अपना नया रेट घोषित कर देता है |शायद जीवन-अनुभव को आप ने प्रतीकों से उभारा है |लघुकथा अच्छी लगी |

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