१२२२ १२२२ १२२२ १२२२
कुम्हलाए हम तो जैसे सजर से पात झड़ जायें
यु दिल वीरां कि बिन तेरे चमन कोई उजड़ जायें
मिरी आव़ाज में है अब चहक उसके आ जाने की
सितारों आ गले लूँ लगा कि हम तुम अब बिछड़ जायें
कि बरसों बाद मिलके आज छोड़ो शर्म एहतियात
लबों से कह यु दो के अब लबों से आ के लड़ जायें
न मारे मौत ना जींस्त उबारे या ख़ुदा खैराँ
बला-ए-इश्क़ पीछे जिस किसी के हाय पड़ जायें
बना डाला ग़मों के साहिलों ने ‘’जान’’ को दरिया
रस्ता पर्वत दिए जाये अगर हम राह अड़ जायें
‘’मौलिक व् अप्रकाशित’’
Comment
हौसलाफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया गुमनाम भाई!! मेरे समझ से उच्चारण में 'कु'+ 'म्ह'+ 'ला' + 'ए' १२२
२ आएगा, कुम् +हलाए नही... इसी प्रकार मुझ पर अपना स्नेह बनाये रक्खें!!
भाई कृष्ण मिश्रा जी , सुन्दर रचना है
बना डाला ग़मों के साहिलों ने ‘’जान’’ को दरिया
रस्ता पर्वत दिए जाये अगर हम राह अड़ जायें....बहुत खूब ,बधाई आपको !
कुम्हलाए 2122 ,,,,,,,,,,,,,,,,, शायद इसकी तक्तीअ ऐसी हो ......
ग़ज़ल अच्छी कही है बधाई
शुक्रिया आ० shyam mathpal जी!!
बहुत बहुत शुक्रिया महर्षि भाई!!
हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया सोमेश भाई!!
आ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी आभार! त्रुटियाँ सुधरने में प्रयासरत हूँ!!इसी प्रकार अपना स्नेह बनाये रक्खें!
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी बहुत बहुत आभार! प्रयास की सराहना के लिए! कुछ जगहों पे मात्र गिरा कर संतुलन बनने का प्रयास किया है!
और कुछ स्थानों पर शब्दों का मोह नही छोड़ पाया! जैसे एहतियात में 'त' बेबहर हो गया है! और ''रस्ता'' का वजन १'२ न होकर २'२ होगा !! एहतियात और रस्ता की जगह अन्य किसी शब्द के प्रयोग में लेने पर शेर की खूबसूरती कम होती दिखती है! एहतियात को एहतियाँ कर दूँ?क्या ये सही अर्थ देगा?अन्य त्रुटियों पर भी मार्गदर्शन का आकांछी हूँ!!आ० मार्गदर्शन करें!!
आपकी गजल काफी सुन्दर है आपको ढेरों बधाई आ.बड़े भाई कृष्णा मिश्रा जी |
Aadarniya,
Mishra Ji badhai.
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