112 212 221 212
बस कर ये सितम के,अब सजा न दे
हय! लम्बी उम्र की तू दुआ न दे।
अपनी सनम थोड़ी सी वफ़ा न दे
मुझको बेवफ़ाई की अदा न दे।
गुजरा वख्त लौटा है कभी क्या?
सुबहो शाम उसको तू सदा न दे।
कलमा नाम का तेरे पढ़ा करूँ
गरतू मोहब्बतों में दगा न दे।
इनसानियत को जो ना समझ सके
मुझको धर्म वो मेरे खुदा न दे।
रखके रू लिफ़ाफे में इश्क़ डुबो
ख़त मै वो जिसे साकी पता न दे।
न किसी काम का है हुनर सुखन
जब दो जून की रोटी, कबा न दे। (कबा = कपड़े)
लिखता हूँ जिगर में आग को लिए
तुझको शेर मेरा उफ़! जला न दे।
रहने दें सता मत जिन्दगी उसे
परदा ‘’जान’’ तेरा गो हटा न दे।
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
आदरणीय कृष्णा भाई , ग़ज़ल का बेहतरीन प्रयास ज़ारी है , बहुत सुन्दर ! ' ग़ज़ल की बातें ' का भी अध्ययन ज़रूर करें मेरे खयाल से आसानी जियादा हो जायेगी । और समय कम लगेगा । आपको इस गज़ल के लिये दिली बधाइयाँ ।
बहुत बहुत शुक्रिया!आभार आ० shyam mathpal जी!!
आदरणीय गोपाल सर जी आपने सही कहा गजल में संकेतों को समझना आवश्यक है! सभी अग्रजों की दी हुयी सलाह और पाठ को मै सम्मानपूर्वक पूरे लगन से सिखने को तत्पर हूँ!!आदरणीय आपना आशीर्वाद बनायें रखें आदरणीय.
आदरणीया manjari pandey जी उत्साह्वार्शन के लिए बहुत बहुत आभार!!
आ० सौरभ पाण्डेय सर!!रचना पर आपकी दृष्टी पड़ी सौभाग्य है मेरा!!अपना स्नेह इसी प्रकार मुझ पर बनाये रक्खें! बिल्कुल मै obo मंच से जितना मेरी योग्यता है उसके अनुरूप सीखने का हर संभव प्रयास कर रहा हूँ!!
आ० खुर्शीद सर जी! बिल्कुल मै यही जानना छह रहा था!!आपने एकदम सही मेरे मनोभाव को पकड़ा !!बहुत बहुत शुक्रिया, मुझे इतनी अच्छी तरह से समझने के लिए!!आरंभ से ही मुझे लग रहा था कुछ तो छूट रहा है, जो आ० मिथिलेश सर कहना चाह रहे वो मै पकड़ नही पा रहा हूँ! अभी गजल की कक्षा जो आ० तिलकराज जी द्वारा पाठ दिए है उसी को पढ़ पाया हूँ बस उसमें सबब-ए -ख़फ़ीक का जिक्र नही है शायद!इस वजह से यहाँ चूक हुई! खैर अब गज़ल के सागर कदम कदम पे सीख मिलती रहे इससे अच्छा क्या हो सकता है! आदरणीय खुर्शीद सर इसी प्रकार अपना वरदहस्त मुझ पर बनाये रक्खें!!बहुत बहुत आभार!
Priya Kirshna Mishra Ji,
Hridaya Sparshi rachna ke liye badhai.
इनसानियत को जो ना समझ सके
मुझको धर्म वो मेरे खुदा न दे।
Insaaniyat Ke gaon bahut Door hain
Wahan tak pahuchane ke path kastpurn hain
प्रिय कृष्ण
हिन्दी के छंद में वज्न का पता चल जाता है पर उर्दू--गजल में संकेत करने से गजल को समझना आसान हो जाता है i आ० सौरभ जी और मिथिलेश वामनकर र्जी की सलाह काबिले गौर है i स्नेह i
बस कर ये सितम के,अब सजा न दे
हय! लम्बी उम्र की तू दुआ न दे।
बहुत सुन्दर असरदार रचना के लिए बधाई आदरणीय ।
आप मिहनत कर रहे हैं. बहुत बढिया.
मंच पर पोस्ट हो चुके ग़ज़ल से सम्बन्धित पाठों का अध्ययन करें. बहुत कुछ और स्पष्ट होगा.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online