कुंठाओं के झरे पात,
आशाओं का हो सुप्रभात
दफ़न हो घात प्रतिघात
खुशिओं के सदा बहें प्रपात
चैन की आए रात
बची रहे इंसानियत की जात
चलती रहे गीत गजलों की बात
हम समझें सबके जज्बात
खुश्बू भरे मौसम से हो मुलाकात
जख्मी रिश्तों के बदले हालात
जहरीली हवाएँ न करे आघात
कलुषित न हो मन आँगन
सुगन्धित हो यह बरसात
भावनाओं को लग पंख
मिलन की मिले सौगात
बौराए पंछी को मिले मीत
बिछुड़न से मिले राहत
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
Aadarniya Dr.Shribastav Ji,Maharishi Ji wa Shyam Verma ji aap logon ki hosla afjai ke liye bahut aabhar-Sukriya.
आ० मठपाल जी
आपकी शुभकामनाओ और सौगातो को स्वीकार करते है i आप ऐसे ही आशीष देते रहे i सादर i
अच्छी भावपूर्ण रचना पर ,,आपको हार्दिक बधाई आ.श्याम जी |
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय ,बधाई |
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