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सपनो  को बेच  रहा वादों  की मंडी में

शोर बहुत है बस्ती में सुनता नहीं कोई

 

वो वहीँ खड़ा  चल चित्र दिखा रहा

रंगीन चश्मे की दुनियां समझता नहीं कोई 

 

बाहँ थाम कर जिसे उसने आगे बढ़ाया

कन्धों पर चढ़ गया वो  देखता नहीं कोई

 

मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो

वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई

 

चार दीवारें खड़ी कर बन गया मकां

आपस में लड़ते रहे,मोहब्बत जगाता नहीं कोई

  

झंडे किताब के चर्चे  यों  ही होते रहे

पिरकापरस्ती में जी रहे, मिलाप कराता नहीं कोई

 

मौसम का अजीब बदला है मिजाज

उजड़ रहे बाग़ ,इन्हें बचाता नहीं कोई

 

हँसते खेलते सदा, रहे जो  साथ साथ

रोटी पर झगड़ पड़े ,इन्हें मनाता  नहीं कोई

मौलिक व अप्रकाशित

*************************************

 

 

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Comment by Shyam Mathpal on March 15, 2015 at 1:15pm

Aadarniya Giriraj Ji,

Utsahvardhan ke liye dili aabhar. surkirya.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 9:39am

मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो

वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई   -- बढिया बात कही , आदरणीय श्याम भाई , बधाइयाँ ।

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 7:51pm

Aadarniya Khursheed khairadi Ji,

Aapki rachna pasand aai. Bahut dhanyabad- Surkriya.

Comment by khursheed khairadi on March 14, 2015 at 9:50am

मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो

वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई

 

चार दीवारें खड़ी कर बन गया मकां

आपस में लड़ते रहे,मोहब्बत जगाता नहीं कोई

आदरणीय श्याम जी ,सुन्दर भाव हैं |हार्दिक अभिनन्दन |

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 9:39am

Aadarniya Kirshna Mishra Ji,Aadarniya Hari Prakash dubey Ji,Aadarniya Maharishi Tripathi,Aadarniya Dr.Vijai Shankr Ji wa Aadarniya Somesh Kumar ji aapke bahumulya comments ke liye main dil se aabhari hoon . Aapke hausla afjai mujhe naee urja pradan karegai.  Punaha aapka dhanyabad.

Comment by somesh kumar on March 14, 2015 at 8:40am

चार दीवारें खड़ी कर बन गया मकां

आपस में लड़ते रहे,मोहब्बत जगाता नहीं कोई

घर-घर की कहानी है ये आदरणीय |

पूरी रचना समाजिक दोषों को सफलतापुर्वक ईंगित करती है ,बधाई इस कोशिश पर 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 13, 2015 at 9:58pm
वाह , बहुत सुन्दर , सभी अशआर बहुत सुन्दर , आदरणीय श्याम पाठपाल जी , सादर।
Comment by maharshi tripathi on March 13, 2015 at 9:48pm

हँसते खेलते सदा, रहे जो  साथ साथ

रोटी पर झगड़ पड़े ,इन्हें मनाता  नहीं कोई,,,,,,,,,,बहुत खूब आ. Shyam Mathpal  जी ,,बधाई प्रेषित है !!!!

Comment by Hari Prakash Dubey on March 13, 2015 at 5:40pm

आदरणीय श्याम मठपाल जी सुन्दर प्रयास हुआ है , बधाई आपको, बाकी इसके तकनीकी पक्ष पर विद्वजन ही बता पायेंगे  !

/मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो

वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई/.....सुन्दर !

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 13, 2015 at 4:42pm

आ० shyam mathpal जी इस प्रयास पर बधाई!

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