सपनो को बेच रहा वादों की मंडी में
शोर बहुत है बस्ती में सुनता नहीं कोई
वो वहीँ खड़ा चल चित्र दिखा रहा
रंगीन चश्मे की दुनियां समझता नहीं कोई
बाहँ थाम कर जिसे उसने आगे बढ़ाया
कन्धों पर चढ़ गया वो देखता नहीं कोई
मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो
वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई
चार दीवारें खड़ी कर बन गया मकां
आपस में लड़ते रहे,मोहब्बत जगाता नहीं कोई
झंडे किताब के चर्चे यों ही होते रहे
पिरकापरस्ती में जी रहे, मिलाप कराता नहीं कोई
मौसम का अजीब बदला है मिजाज
उजड़ रहे बाग़ ,इन्हें बचाता नहीं कोई
हँसते खेलते सदा, रहे जो साथ साथ
रोटी पर झगड़ पड़े ,इन्हें मनाता नहीं कोई
मौलिक व अप्रकाशित
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Comment
Aadarniya Giriraj Ji,
Utsahvardhan ke liye dili aabhar. surkirya.
मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो
वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई -- बढिया बात कही , आदरणीय श्याम भाई , बधाइयाँ ।
Aadarniya Khursheed khairadi Ji,
Aapki rachna pasand aai. Bahut dhanyabad- Surkriya.
मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो
वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई
चार दीवारें खड़ी कर बन गया मकां
आपस में लड़ते रहे,मोहब्बत जगाता नहीं कोई
आदरणीय श्याम जी ,सुन्दर भाव हैं |हार्दिक अभिनन्दन |
Aadarniya Kirshna Mishra Ji,Aadarniya Hari Prakash dubey Ji,Aadarniya Maharishi Tripathi,Aadarniya Dr.Vijai Shankr Ji wa Aadarniya Somesh Kumar ji aapke bahumulya comments ke liye main dil se aabhari hoon . Aapke hausla afjai mujhe naee urja pradan karegai. Punaha aapka dhanyabad.
चार दीवारें खड़ी कर बन गया मकां
आपस में लड़ते रहे,मोहब्बत जगाता नहीं कोई
घर-घर की कहानी है ये आदरणीय |
पूरी रचना समाजिक दोषों को सफलतापुर्वक ईंगित करती है ,बधाई इस कोशिश पर
हँसते खेलते सदा, रहे जो साथ साथ
रोटी पर झगड़ पड़े ,इन्हें मनाता नहीं कोई,,,,,,,,,,बहुत खूब आ. Shyam Mathpal जी ,,बधाई प्रेषित है !!!!
आदरणीय श्याम मठपाल जी सुन्दर प्रयास हुआ है , बधाई आपको, बाकी इसके तकनीकी पक्ष पर विद्वजन ही बता पायेंगे !
/मशाल लेकर भीड़ में आगे चला था जो
वो अब बदल गया टोकता नहीं कोई/.....सुन्दर !
आ० shyam mathpal जी इस प्रयास पर बधाई!
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