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' एक सवाल पूछूँगा ज़रूर ' -- अतुकांत ( गिरिराज भंडारी )

ऐ ज़िन्दगी !

सांसे चल रहीं है मेरी , इसलिये

मरा हुआ तो नहीं कह सकता खुद को

जी ही रहा होऊँगा ज़रूर, किसी तरह , ये मैं जानता हूँ

पर एक सवाल पूछूँगा ज़रूर

 

क्या सच में तू मेरे अंदर कहीं जी रही है ?

जैसे ज़िन्दगी जिया करती है

इस तरह कि  , मै भी कह सकूँ जीना जिसे

उत्साहों से भरी

उत्सवों से भरी

उमंगों से सराबोर सोच के साथ , निर्बन्ध  

चमक दार आईने की तरह साफ मन

प्रतिबिम्बित हो सके  जिसमें शक्ल आपकी , खुद की भी , इसकी या उसकी, सभी की

जैसे कि दिखा देता है , एक निर्दोष, बेग़रज़ आईना हर किसी को

कहकहे लगा सकूँ, हर इक खुशी में ,

नाच उठे मेरा मन

चाहे वो खुशी किसी के हिस्से में आयी हो , मेरी या औरों की

 

भीग जायें मेरी आस्तीने आँसुओं से

आसपास की परिस्थितियों से स्वतः साझा हुये दुखों के निमित्त

संवेदनायें बहतीं रहें निर्बाध

करुना के काले बादल सदा बरस जाने को तैयार

 

उठ जायें स्वतः दुआओं के लिये मेरे दोनों हाथ

सबके लिये निकले दुआयें दिल की गराइयों से  

कि ,

हे प्रभू सबको सुख , शांति दे , आनन्द दे

और दे प्रेम

सब के हृदय में सबके लिये

बस एक सवाल है ,

ऐ ज़िन्दगी ! कभी जी पायी है क्या तू ऐसी मुझमें ?

*********************************************** 

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:45am

आदरणीय कृष्णा भाई , सरहना के लिये आपका आभारी हूँ ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:44am

आदरणीय श्याम नारायण भाई , सराहना के लिये बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:44am

आदरणीय हरि प्रकाश भाई , आपका बहुत बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:43am

आदरणीय श्याम मथपाल भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका बहुत आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:42am

आदरणीय लक्ष्मण रामानुज भाई , सराहना के लिये आपका  आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 13, 2015 at 10:42am

आदरणीय लक्ष्मण भाई , हौसला अफज़ाई का बहुत शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 13, 2015 at 9:13am

आदरणीय गिरिराज सर जब कोई कवि लगातार रचना कर्म कर रहा हो और वो आप जैसा अनुभवी व्यक्ति हो तो कविता सहज ही ज़ुबान से, कलम से निकलती हैं। आपकी कविताओं की सहजता हैरत में डाल देती है। इस अतुकांत द्वारा भी आपने अपनी रचना को लोहा मनवाया है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by maharshi tripathi on March 13, 2015 at 12:02am

इस सहज और गंभीर रचना पर आपको हार्दिक बधाई आ. गिरिराज भंडारी जी |

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 12, 2015 at 9:24pm
हम जिंदगी से सवाल करें ,
वो खुद एक सवाल है ,
बहुत सुन्दर आदरणीय गिरिराज भंडारी जी , सादर।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on March 12, 2015 at 7:49pm

सच! बहुत ही बेहतर लिखा, सर. आपकी अतुकांत कविताओं की बड़ी प्रतीक्षा रहती है. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय गिरिराज जी

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