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तुमने पुकारा ही नहीं मुझको

मैं तो प्रेम रस से 
बादलों की तरह 
भरा हुआ 
बेचैन था 
तुम पर बरसने को
मगर 
तुमने पुकारा ही नहीं मुझको
सूखी 
प्यासी 
व्याकुल 
दरकती हुयी जमीन बनकर
मेरा बरस जाना 
जरूरी थी
क्योंकि 
मैं भरा चुका था 
अन्दर से 
पूरी तरह
मेरी हदों से बाहर 
निकला प्रेम रस
आँखों की कोरों से फूटकर
अश्रुधार बनकर
और बरसता रहा
उम्र भर

उमेश कटारा 
मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by umesh katara on March 16, 2015 at 8:27am

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 15, 2015 at 9:41pm

आ० कटारा जी

आपके गीत से आपके हृदय का पता चलता है . सादर .

Comment by umesh katara on March 15, 2015 at 6:46am

आदरणीय Shyam Mathpal जी आभार

Comment by umesh katara on March 15, 2015 at 6:45am

आदरणीयमिथिलेश वामनकर जी शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 14, 2015 at 9:26pm

सुन्दर भावाभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई 

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 8:16pm

Aadarniya Katara ji,

Bahut sundar aarambh aur utna hi acchha ant. Hridaysparshi rachna ke liye badhai.

Comment by umesh katara on March 14, 2015 at 5:55pm

आदरणीय जितेन्द्र पस्टारियाजी शुक्रिया 

Comment by umesh katara on March 14, 2015 at 5:54pm

आदरणीय maharshi tripathiजी शुक्रिया 

Comment by umesh katara on March 14, 2015 at 5:54pm

आदरणीय Dr. Vijai Shankerजी शुक्रिया 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 13, 2015 at 10:02pm
सुन्दर , आदरणीय उमेश कटारा जी , बधाई , सादर।

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