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मगर क्यों रोज फिर मेरी दवायें भी बदलती हैं

1222 1222 1222 1222
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जहाँ में वक्त के माफिक हवायें भी बदलती हैं
नजर पर मत भरोसा कर निगाहें भी बदलती हैं
..
बहारों से लगाकर दिल अभी पगला गया है तू
खिजाँ से दोस्ती करले फिजायें भी बदलती हैं
..
लगे जो आज अपना सा पता क्या कब मुकर जाये
नये जब यार मिल जायें , दुआयें भी बदलती हैं
..
कभी चाँदी ,कभी सोना ,कभी नोटों,के बिस्तर पर
मुहब्बत तड-फडाती है ,वफायें भी बदलती हैं
..
मुझे मालूम है मेरा अभी तक मर्ज है वो ही
मगर क्यों रोज फिर मेरी दवायें भी बदलती हैं
..
तजुर्बा है मेरा लम्बा ,कहानी है मेरी अपनी
समय के साथ दुनिया की दिशायें भी बदलती हैं

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित

 

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Comment by umesh katara on March 17, 2015 at 7:27am

आदरणीय rajesh kumariजी बहुत बहुत शुक्रिया


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Comment by rajesh kumari on March 16, 2015 at 9:24pm

अच्छी ग़ज़ल हुई है आ० उमेश कटारा जी हार्दिक बधाई 

Comment by umesh katara on March 16, 2015 at 9:13pm

आदरणीय  धर्मेन्द्र कुमार सिंहजी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on March 16, 2015 at 9:13pm

आदरणीय गिरिराज भंडारीजी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on March 16, 2015 at 9:12pm

आदरणीय Shyam Mathpalजी बहुत बहुत शुक्रिया

Comment by umesh katara on March 16, 2015 at 9:12pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी बहुत बहुत शुक्रिया आप के स्नेह और मार्गदर्शन का ही नतीजा है सर

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:15pm

आ० कटारा जी . मैं  तो अब आपका फेन होता जा रहा हूँ . सादर .

Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 3:46pm

Aadarniya Umesh Katara ji,

Kya baat kahi aapne ... kis andaz se...Dil ko chu gaee.   Aapko bahut-2 badhai.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 16, 2015 at 11:46am

अच्छी गज़ल के लिये बधाइयाँ ! आ. कटारा भाई ।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 16, 2015 at 11:23am
अच्छी ग़ज़ल हुई है उमेश जी, दाद कुबूल कीजिए

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