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तिनका तिनका तार तार

गौर से देखो रेगिस्तान को 
मीलों दूर तक
बिखरा पडा है
अपनी सुन्दरता सँवारे हुये
कितनी सदियों से 
आँधी तूफानों से
अनवरत लडा है
कई बार साजिशें हुयीं है
सहरा की धूल को 
दूर उडा ले जाने की 
इसके अस्तित्व को 
हमेशा के लिये 
मिटाने की
पानी के लिये 
प्यासा ही जी रहा है
पानी ने भी कसर नहीं छोडी है
इसे बहाकर दूर ले जाने में 
कई बार गुजरा है 
इसके वक्ष स्थल से होकर
मगर रेगिस्तान का 
स्वाभिमान तो देखिये
चाहता तो सोख जाता 
समन्दर को
डुबो लेता खुद के अन्दर 
मगर गुजर जाने देता है 
दरिया के तूफान को 
नहीं पीता है 
पानी की बूँद तक भी 
अमर है रेगिस्तान
अमर है इसकी सुन्दरता 
अमर है इसका
तिनका तिनका तार तार
बिखर जाना 
जिसका प्रमाण है 
कितने ही युगों से
हजारों मील तक फैला रेेगिस्तान
मुझे भी 
अच्छा लगा इसी तरह 
बिखर जाना 
और मैं बिखर गया 
तिनका तिनका तार तार
अब लगने लगा हूँ शायद
पहले से ज्यादा सुन्दर
देखता हूँ खुद को खुद ही
अपने बिखरे हुये टुकडों में
बार बार


उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित



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Comment

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Comment by umesh katara on March 21, 2015 at 6:23pm

शुक्रिया आदरणीयmaharshi tripathi जी

Comment by maharshi tripathi on March 21, 2015 at 5:26pm

अच्छी प्रस्तुति आ. umesh katara जी |

Comment by umesh katara on March 20, 2015 at 8:31pm

शुक्रिया आदरणीय Nidhi Agrawalजी

Comment by umesh katara on March 20, 2015 at 8:30pm

शुक्रिया आदरणीय pratibha tripathiजी

Comment by Nidhi Agrawal on March 20, 2015 at 4:43pm

मुझे भी 
अच्छा लगा इसी तरह 
बिखर जाना 
और मैं बिखर गया 
तिनका तिनका तार तार

- उफ़ बहुत ही खूबसूरत भाव उमेशजी 

Comment by umesh katara on March 20, 2015 at 8:05am

शुक्रिया आदरणीय krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी

Comment by umesh katara on March 20, 2015 at 8:04am

शुक्रिया आदरणीय मिथिलेश वामनकरजी

Comment by umesh katara on March 20, 2015 at 8:04am

शुक्रिया आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवजी

Comment by umesh katara on March 20, 2015 at 8:04am

शुक्रिया आदरणीयHari Prakash Dubey जी

Comment by Hari Prakash Dubey on March 19, 2015 at 11:52pm

अब लगने लगा हूँ शायद
पहले से ज्यादा सुन्दर
देखता हूँ खुद को खुद ही
अपने बिखरे हुये टुकडों में
बार बार......वाह , हार्दिक बधाई आपको आदरणीय उमेश जी ! सादर 

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