तुमने किया छल
भावविभोर विह्वल
जल-थल मन
मन जल-थल !
हर प्रतिमा में ढूंढूँ
बिम्ब तुम्हारे..
अनंतपथ में ढूंढूँ
पदचिन्ह तुम्हारे..
अहा! रहते
तुम सम्मुख सदा..
करते अभिनय नयनों में...
नयनों से ओझल!
तुमने किया छल....
सांझ-सकारे जोहूँ
मै बाट तुम्हारा..
पर सामर्थ्य कहाँ
हृदय में,प्राण में?
भर सकूँ ओज तुम्हारा..
नित्य नए पात्र का
करता मै अभिनय..
फिर भरके तुम
प्राण में अपना उद्दीपन
करते फिर तुम नयन सजल!
तुमने किया छल....
तुमने किया छल
भावविभोर विह्वल
जल-थल मन
मन जल-थल !
‘’मौलिक व अप्रकाशित’’
Comment
आदरणीय कृष्णा भाई , बहुत सुन्दर !! हार्दिक बधाई ॥
वाह बहुत खूब रचना हुई है ...बधाई आप को
प्रिय कृष्णा
सुन्दर रचना . प्रयास् जारी रहे .
भाई कृष्ण मिश्रा जी, सुन्दर रचना है ,आपको बहुत बहुत बधाई ! सस्नेह
Aadarniya Krishna Mishra Ji,
Bahut hi sundar.... Dil ki gahraiyon se badhai.
वाह !! आ.बड़े भाई आपको गजल के अतिरिक्त एक अतुकांत कवि के रूप में देखकर बहुत अच्छा लगा ,,,आपको दिली बधाई |
बहुत सुन्दर ॥ अतुकांत रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ |
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