1222---1222---1222---1222 |
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ग़ज़ल से पा रहा हूँ मैं, ग़ज़ल ही गा रहा हूँ मैं |
ग़ज़ल के सर नहीं बैठा, ग़ज़ल के पा रहा हूँ मैं |
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किसी की नीमकश आँखों का तारा हूँ जमानों से |
नयन से गीत सा उतरा, गुहर बन गा रहा हूँ मैं |
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यकीं नासेह पर मत कर, भरोसे का नहीं रहबर |
मगर कब मानता है दिल, कसम फिर खा रहा हूँ मैं |
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तुम्हारी आरज़ू हूँ मैं, तमन्ना तुम मेरे दिल की |
दुआ बन के रही हो तुम, अकीदत सा रहा हूँ मैं |
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जिधर दुनिया हकीक़त की, रवानी है तबीयत की |
पकड़ कर हाथ जीवन का, उधर ही जा रहा हूँ मैं |
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सितारों से भरी इक रात में जो ख्वाब देखा है |
फ़क़त उस ख्वाब में तुम हो नुमायाँ या रहा हूँ मैं |
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भुलावा जिंदगी को दे रहा हूँ बस यही कहकर |
ज़रा सा जिंदगी ठहरों कि खुशियाँ ला रहा हूँ मैं |
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खयालों ने पसारे पाँव क्यूं औकात से ज्यादा |
धुआँ बन के नजारों पर गज़ब का छा रहा हूँ मैं |
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सभी ने लाख समझाया, मुहब्बत रोग है दिल का |
निहायत नातवाँ दिल पर, कहर खुद ढा रहा हूँ मैं |
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मुक़र्रर मत कहो गज़लें, उठी बेज़ार दिल से जो |
ग़मों को अलविदा मेरा, जहां से जा रहा हूँ मैं |
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अरुज़ी भी नहीं कोई, न शायर हूँ कलामों का |
ग़ज़ल आवाज़ देती है, तो कहता- “आ रहा हूँ मैं” |
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Comment
बहुत बहुत बधाई ..क्या खूब कहा है
भुलावा जिंदगी को दे रहा हूँ बस यही कहकर
ज़रा सा जिंदगी ठहरों कि खुशियाँ ला रहा हूँ मैं
भुलावा जिंदगी को दे रहा हूँ बस यही कहकर |
ज़रा सा जिंदगी ठहरों कि खुशियाँ ला रहा हूँ मैं |
वाह -वाह बहुत सुन्दर ग़ज़ल भाई मिथिलेश जी दिली दाद क़ुबूल करें।।
वाह.................... खूबसूरत गजल ,,,आपको हार्दिक बधाई मिथिलेश जी |
आ० मिथिलेश जी
आपकी गजल में कहने के लिए कुछ नहीं रहता सिवाय वाह वाह और वाह के ---आख़िरी शेर पर तो निसार हूँ . सादर .
आदरणीय मिथिलेश भाई, बहुत ही सुन्दर रचना है, हार्दिक बधाई ! सादर
भुलावा जिंदगी को दे रहा हूँ बस यही कहकर
ज़रा सा जिंदगी ठहरों कि खुशियाँ ला रहा हूँ मैं...बहुत खूब
खयालों ने पसारे पाँव क्यूं औकात से ज्यादा
धुआँ बन के नजारों पर गज़ब का छा रहा हूँ मैं.......शानदार
वाह !!!एक और खूबसूरत गजल ,,,आपको हार्दिक बधाई आ.मिथिलेश वामनकर जी |
bahut khoob bhai waaah waaah waaah
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