आवरण कितने गाढ़े ,कितने गहरे
कई कई परतों के पीछे छिपे चेहरे
नकाब ही नकाब बिखरे हुए
दुहरे अस्तित्व हर तरफ छितरे हुए
कहीं हँसी दुख की रेखायें छिपाए है
तो कभी अट्टहास करुण क्रन्दन दबाए है
विनय की आड़ लिये धूर्तता
क्षमा का आभास देती भीरुता
कुछ पर्दे वक़्त की हवा ने उड़ा दिये
और न देखने लायक चेहरे दिखा दिये
आडम्बर को नकेल कस पाने का हुनर
मुश्किल बहुत है मगर
कुछ चेहरों में फिर भी
बेधड़क नग्न रहने का साहस है
बिना कोई ओट ढूँढे
सच कहने का साहस है
उन्हें आवरण जँचा नहीं
या कि लगाना नहीं आया
जो भी हो उन्हें खुद को
छिपाना नहीं आया
उनमें साहस की हर लकीर सच्ची है
और अच्छाई सचमुच में अच्छी है
उन्हें पढ़ पाना एक दम सहज है
क्योंकि वहाँ अंकित हर भाव सजग है
पर भीड़ से छिटककर अकेले चलना बड़ा जटिल है
अतः आँखें मूँद भीड़चाल चलना सुहाता है
आवरण ,मुख़ौटे, नकाब रक्षाकवच की मानिन्द
चेहरे पर ओड़े हुए हमें छिपना भाता है
आवरण कितने गाढ़े,कितने गहरे
कई कई परतों के पीछे छिपे चेहरे
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
इतने सुन्दर स्वागत एवं उत्साह वर्धन हेतु हार्दिक धन्यवाद मैम
सबसे पहले तो प्रिय तनूजा,आपका ओबिओ में हार्दिक स्वागत है.तुम्हें यहाँ देखकर बहुत प्रसन्नता हुई |
अतुकांत विधा में ओबिओ पर आपकी शायद पहली रचना है ,बहुत ही उम्दा लेखन आपके स्वभाव की तरह ,आपकी कहानियों से तो प्रभावित थी ही अब आपकी और रचनाएँ भी पढने को मिलेंगी आपकी रचनाओं से भी ओबीओ लाभान्वित होगा| हृदय तल से बहुत बहुत बधाई आपको |
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