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मालोपमा (उपमा अलंकार का एक भेद )

पुरवा बयार सी

मद भरे ज्वार सी   

फूलो में जवा सी

स्पर्श में हवा सी

महुआ की गंध सी

पाटल सुगंध सी

आमों की बौर सी

करौंदे की झौर सी

नीम की महक सी

पलाश की दहक सी

टूटे मोर पंख सी

पूजागृह के शंख सी

मंदिर के दीप सी

मोती भरी सीप सी

जल भरे डोल सी

विद्युत् कपोल सी

लहराते व्याल सी

दृप्त इंद्रजाल सी

पावस की धार सी

राधा के प्यार सी

पतझड़ के अंत सी

सौरभ बसंत सी

हिम के शृंगार सी

रति के दुलार सी

जीवन में आयी तुम

दृग में समाई तुम

उपमा की माल सी

कैरव की डाल सी  

आह i उन्मादिनी  !

प्रिय मधुवादिनी

स्मृति विशेष हो

अंतस् में शेष हो ---

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:17pm

आ० वामनकर जी

आपका सादर आभार . दिल से .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:16pm

आ० प्रतिभा त्रिपाठी जी

बहुत बहुत धन्यवाद . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:15pm

आ० विजय सर !

आपके स्नेह का सदैव आकांक्षी . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:14pm

 प्रिय महर्षि त्रिपाठी

आभार प्रकट करता हूँ . स्नेह .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:13pm

आ० मठपाल जी

आपका हार्दिक आभार . सादर .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:12pm

प्रिय पवन

आभारी हूँ . स्नेह .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:11pm

आ० श्याम नारायण वर्मा जी

सादर आभार .

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 21, 2015 at 1:10pm

आ० निधि जी

बहुत शुक्रगुजार हूँ , सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 20, 2015 at 9:20pm

आदरणीय  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव सर, सुन्दर उपमाएं . नमन 

Comment by Dr. Vijai Shanker on March 20, 2015 at 6:25pm
सुन्दर लयबद्ध आदरणीय डॉO गोपाल नारायण जी, बधाई , सादर।

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