For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- हमसफ़र निकलते हैं .. (बराए इस्लाह)

212-1222-212-1222

ख़्वाब मेरी आँखों से रात भर निकलते हैं
रहगुज़र नहीं आसाँ बा ख़बर निकलते हैं

बेचने ज़मीर अपना हम चले हैं गलियों में
देखो खिड़कियों से अब कितने सर निकलते हैं

नातवाँ बहादुर को दे रहा चुनौती है
चींटियों के भी अब तो बाल-ओ-पर निकलते हैं

दिल हमारा आईना आप हैं खरे पत्थर
बज़्म आपकी और हम टूट कर निकलते हैं

मैक़दे कहाँ करते, फ़र्क रिन्दो-वाइज़ का
जो भी पीते हैं मदिरा झूम कर निकलते हैं

बिन किसी विभीषण के ढहती है कहाँ लंका
साज़िशों में कुछ अपने मोतबर निकलते हैं

आख़िरत में क्या होगा हम अभी से क्यूँ सोचें
सोच कर यही घर से हमसफ़र निकलते हैं

ये ग़ज़ल मुरस्सा हो चाहता था मैं लेकिन
जल्दबाज़ी में मुझसे कब गुहर निकलते हैं

-----------------------------------------
मौलिक व अप्रकाशित © दिनेश कुमार
-----------------------------------------

Views: 785

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by दिनेश कुमार on March 22, 2015 at 11:37pm
बहुत बहुत आभारी हूँ आदरणीय शिज्जू भाई जी, आप की सराहना मेरा बहुत हौसला बढ़ाती है।
मेरा ज्ञान बहुत सतही और सीमित है। Internet पर उपलब्ध जानकारी के माध्यम से ही अभी बह्र की abc सीखने की प्रक्रिया में हूँ। कहीं लिखा हुआ था कि कुछ बह्र के मध्य में compulsory stoppage आता है, तब हम एक अतिरिक्त लघु की छूट ले सकते हैं। जैसे - हम तो चलते अपने गाम // अपनी राम राम राम .. । और दूसरी बात कि ग़ज़ल गाने के दौरान मात्रा गिराने का बिल्कुल भी आभास नहीं हो रहा। हो सकता है मैं गलती पर हूँ।
वाइज़ के बारे में पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि शायद मैंने ठीक लिखा हो। कल दोबारा सोचता हूँ भाई शिज्जू जी। पुनः आभार। स्नेह बनाए रखिएगा।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on March 22, 2015 at 9:08pm

आदरणीय दिनेश कुमार जी आपकी इस ग़ज़ल के कुछ अश'आर कहन के हवाले से प्रभावित करते हैं जैसे-
बिन किसी विभीषण के ढहती है कहाँ लंका
साज़िशों में कुछ अपने मोतबर निकलते हैं

आख़िरत में क्या होगा हम अभी से क्यूँ सोचें
सोच कर यही घर से हमसफ़र निकलते हैं
इनके लिये दाद कुबूल करें

कुछ जगह मैं आपका ध्यान ज़रूर आकर्षित करना चाहूँगा जैसे मतले में अश'आर का वज्न आपने 22 लिया यहाँ मात्रा गिराना क्या सही है ज़रा देख लें।
दूसरे, रवायती ग़ज़लों में वाइज़ का उल्लेख धर्मोपदेशक के रूप में किया गया है जिसे नापसंद किया जाता है मगर वाइज़ का शराब पीना एक विरोधाभास पैदा कर रहा है। इसी शे'र में भी वही गलती है जो मतले के ऊला में है। यदि इस बह्र में आपने एक अतिरिक्त लघु लिया है तो क्या वो अर्कान के बीच में लेना सही है? ज़रा देख लें।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
6 hours ago
ajay sharma shared a profile on Facebook
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service