“अरे!! भाई.. दोनों में से एक बैल तो अभी दांत वाला है, ठीक से कीमत बता. फिर बिना दांत वाला वैसे ही लेजा, उसका क्या करूँगा मैं..? आखिर खली-भूसा भी महंगा पड़ता है..”
“पटेल भैया .. दांत वाले की ही कीमत है, बुढ्ढे बैल को मुझ से भी कौन खरीदेगा..? यहीं खूंटे भी ही मरने दो..”
नजदीक ही पटेल भैया के बीमार पिता, चारपाई पर पड़े सारी बातें सुन रहे थे...
जितेन्द्र पस्टारिया
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
बहुत मार्मिक ...आपकी लघु कथाएँ इशारों इशारों में बहुत गंभीर बात कह देती हैं यही ख़ासियत है बहुत बहुत बधाई जितेन्द्र भैया
आदरणीय जीतेन्द्र जी लगता है आप मेरी बात समझ नही पाये!! मेरा कहना ये है कि बैल चाहे कितना भी बूढ़ा क्यों न हो जाये,आमतौर पर इस तरह के पशुओ के दांत वृद्धावस्था में नही गिरते!!इस दृष्टी से आप दांत न होना को बैल के वृद्ध होने से जोड़कर नही दिखा सकते!!
यहाँ बैल की बूढी काया,अस्थिपिंजर दिखना आदि को प्रतीक के तौर पे लिया होता तो तथ्यगत होता!!
रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका आभारी हूँ, आदरणीय डा.गोपाल जी.
सादर!
सराहना व् उपश्थिति हेतु आपका ह्रदय से आभार, आदरणीय श्याम नारायण जी
सादर!
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु आपका आभारी हूँ, आदरणीय कृष्णा जी. आप सही कह रहे है की बैल के दांत बुढापे में नहीं होते किन्तु जब बैल ,शिशु अवशथा में होता है तो उसे बछड़ा कहा जाता है.
सादर!
आपका आत्मीय आभार ,पवन भाई
सादर!
रचना को आपका आशीर्वाद मिला, रचना धन्य हुई आदरणीय डा.विजय जी
सादर!
आपकी बधाई सहर्ष स्वीकार है आदरणीय मिथिलेश जी. सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभार
सादर!
आपका बहुत-बहुत आभारी हूँ, आदरणीय विनय जी
सादर!
लघुकथा की सराहना व् उत्साहवर्धन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ ,आदरणीय हरिप्रकाश जी
सादर!
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