For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -- बूँद भी नहीं मिलती...... (मिथिलेश वामनकर)

212---1222---212---1222

 

धूप भी नहीं मिलती छाँव भी नहीं मिलती

ताकतों के साए में ज़िन्दगी नहीं मिलती

 

ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं मुमकिन 

गर मिले समंदर तो तिश्नगी नहीं मिलती

 

आसमां सियासत से रूबरू हुआ जबसे

चाँद भी नहीं मिलता चांदनी नहीं मिलती

 

जाम के हवाले से दो जहां उठा लाया

मैकशी के आलम में बूँद भी नहीं मिलती

 

मत करो कदमबोसी दूरियां जरूरी है

ज्यूं तले  चरागों के रौशनी नहीं मिलती

 

बात में सचाई हो, रूह में खुदाई हो

आदमी नहीं जिसमें कुछ कमी नहीं मिलती

 

धुंध ये अजीयत की, खा गई नसीबों को

हाथ की लकीरें भी साफ़ सी नहीं मिलती

 

हसरतों के साये में बेकफन मरासिम है

आँख का मरा पानी अब नमी नहीं मिलती

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
-----------------------------------------------------

Views: 986

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 3:40pm
आदरणीय निर्मल नदीम भाई जी ग़ज़ल पर आपकी उत्साहवर्धक सकारात्मक प्रतिक्रिया और सराहना पाकर धन्य हुआ। हार्दिक आभार।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 23, 2015 at 3:38pm
आदरणीय धर्मेन्द्र भाई जी ग़ज़ल पर आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा पाकर अभिभूत हूँ। जब आप जैसे सुलझे हुए ग़ज़लकार से तारीफ और दाद मिलती है तो लगता है लिखना सार्थक हुआ। एक नए अभ्यासी का बहुत उत्साहवर्धन होता है। मनोबल बढ़ता है। हार्दिक आभार।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 23, 2015 at 2:11pm

आ० वामनकर जी

खूबसूरत . गजलगोई में आपका जवाब नहीं.  सादर .

Comment by Nidhi Agrawal on March 23, 2015 at 1:36pm

व्वाआआआआअह्ह्ह्ह.. ज़बरदस्त ग़ज़ल हुई .. हर शेर उम्दा .. मजा आ गया 


ज़िन्दगी मुकम्मल हो ये कभी नहीं मुमकिन
गर मिले समंदर तो तिश्नगी नहीं मिलती  ------------------- क्या बात क्या बात !! 

आसमां सियासत से रूबरू हुआ जबसे
चाँद भी नहीं मिलता चांदनी नहीं मिलती  --- एकदम सच है सर क्या कहने 

बात में सचाई हो, रूह में खुदाई हो
आदमी नहीं जिसमें कुछ कमी नहीं मिलती  ---- माशा अल्लाह क्या शेर कहा है 

दिली दाद कुबूल करें आदरणीय मिथिलेश जी 

Comment by Shyam Narain Verma on March 23, 2015 at 12:33pm
क्या बात है .... बहुत उम्दा | बधाई आप को 
Comment by Nirmal Nadeem on March 23, 2015 at 12:01pm

Bahut umda bhai waaah waaah waaaah. bahut khooob. mazaaa aa gya. mubarak ho

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on March 23, 2015 at 11:42am
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है आ. मिथिलेश जी, एक से बढ़कर एक अश’आर हैं। किस की तारीफ़ करूँ और किस को छोड़ूँ। दिली दाद कुबूल कीजिए।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय निलेश जी  बहुत बहुत शुक्रिया आपका इतनी बारीक़ी बताने के लिए।  मतले का सुझाव बेहतर…"
7 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय शकूर जी  हौसला अफ़ज़ाई के लिए बहुत शुक्रिया आपका इतने विस्तार से आपने बताया सब आभार…"
13 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"श्रीमान नीलेश जी, अपनी बातचीत की शैली सुधारिए। हर बात तंज में कहना आवश्यक नहीं होता। आपने पिछले…"
16 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय निलेश जी नमस्कार  बहुत अच्छे कवाफ़ी लिए और बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार…"
22 minutes ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय शकूर जी नमस्कार  बहुत ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिए  गिरह ज़बर्दस्त…"
28 minutes ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"//वेदना तुम से विरह की एक पल भूले नहींकिन्तु नव सम्बन्ध हम स्वीकार भी करते रहे// हासिल-ए-ग़ज़ल शेर !…"
48 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"ग़़ज़ल पर संभावित प्रश्नों को विचार में लेते हुए मेरे विचार प्रस्तुत हैं।  खुद ही अपनी…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. अजय जी आपकी आपत्ति का संज्ञान ले लिया गया है. सभी देवताओं को किसी ने व्यभिचारी नहीं कहा…"
1 hour ago
Gajendra shrotriya replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"वाह! ख़ूब ! ख़ूब! बहुत ख़ूब! शानदार ग़ज़ल कही आपने आदरणीय शिज्जू शकूर साहब। गिरह सहित सभी शेर असरदार…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. दयाराम जी,बहुत खूब ग़ज़ल हुई है ..इस्लाह जैसा कुछ भी नहीं है किन्तु दो चार बारीक बातें प्रस्तुत…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आ. अजय जी.मलते में नेता मिल के भ्रष्टाचार करते हैं लेकिन असल में ऐसा होता नहीं. वो अपनी अपनी बारी…"
1 hour ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण जी नमस्कार  ग़ज़ल का अच्छा प्रयास किया आपने बधाई स्वीकार कीजिए  गुणीजनों…"
1 hour ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service