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२१२२/ २१२२/ २१२२/२१२२ 

हादसा टूटा जो मुझ पे हादसा वो कम नहीं है
ग़म ज़माने का मुझे है इक तेरा ही ग़म नहीं है.  
.
या ख़ुदा! तेरे जहाँ का राज़ मैं भी जानता हूँ,
हैं ख़ुदा हर मोड़ पर लेकिन कहीं आदम नहीं है.
.
तेरे वादे की क़सम मर जाएँ हम वादे पे तेरे,
क्या करें वादे पे तेरे तू ही ख़ुद क़ायम नहीं है. 
.
ज़ख्म वो तलवार का हो वार हो चाहे जुबां का
वक़्त से बढकर जहाँ में कोई भी मरहम नहीं है.
.
देखते ही कह पड़ा
यक-लख़्त मुझको इक नजूमी  
हिज्र की ऋत तो लिखी है वस्ल का मौसम नहीं है.
.
ख़ुश्क सहरा सा हुआ है सूख कर कोई समुन्दर
झीलें आँखों की हैं सूखी दिल ज़रा भी नम नहीं है.    
.
रिश्ते नाते ग़म ख़ुशी सब आदमी की फितरतें हैं
धडकनों के पार दुनिया में ख़ुशी- मातम नहीं है.
.
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश "नूर"

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Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 27, 2015 at 7:52pm

शुक्रिया आ. उमेश जी 

Comment by umesh katara on March 27, 2015 at 7:50pm

है ग़ज़ल उम्दा बहुत ही लाजवाबी 'नूर' हो तुम

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2015 at 11:48pm

शुक्रिया आ. भंडारी जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 26, 2015 at 11:48pm

शुक्रिया श्री हरी प्रकाश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 26, 2015 at 11:35am

ज़ख्म वो तलवार का हो वार हो चाहे जुबां का
वक़्त से बढकर जहाँ में कोई भी मरहम नहीं है.

देखते ही कह पड़ा यक-लख़्त मुझको इक नजूमी  
हिज्र की ऋत तो लिखी है वस्ल का मौसम नहीं है.   --- आदरणीय नीलेश भाई , बढिया गज़ल के इन और भी बढिया शे र्के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by Hari Prakash Dubey on March 26, 2015 at 10:00am

ज़ख्म वो तलवार का हो वार हो चाहे जुबां का 
वक़्त से बढकर जहाँ में कोई भी मरहम नहीं है. 

ख़ुश्क सहरा सा हुआ है सूख कर कोई समुन्दर
झीलें आँखों की हैं सूखी दिल ज़रा भी नम नहीं है.  

रिश्ते नाते ग़म ख़ुशी सब आदमी की फितरतें हैं
धडकनों के पार दुनिया में ख़ुशी- मातम नहीं है. ......बहुत खूब , बधाई आपको इस शानदार ग़ज़ल पर , आदरणीय  निलेश "नूर" जी ! सादर 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 10:56pm

शुक्रिया आ. मिश्रा जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 10:56pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर. ..
अभी दुरुस्त कर  लेता हूँ 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on March 25, 2015 at 10:55pm

शुक्रिया आ. राजेश कुमारी जी. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 25, 2015 at 10:53pm

बड़े दिनों बाद दीदार हुए, आदरणीय !!
दिल से दाद कुबूल कीजिये..

बहर के वज़न को क्या लिख दिया है आपने ?.. दुरुस्त कर लीजिये आदरणीय नीलेशजी.

कृपया ध्यान दे...

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