२१२२ २१२२ १२१२२
मेरी दुनिया रहने दो अपनी ख़्वाब आँखें
दो जहाँ हैं मेरी ये दो गुलाब आँखें
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अब तू सम्हल जिंदगी होश खो चुके हम
साकिया ने है पिला दी शराब आँखे
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ढूंढ लेंगे हम.....रहो पास तुम अगर बैठे
सब सवालों का देती हैं जव़ाब आँखें
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मेरी मोहब्बत इबादत नफ़स-नफ़स है
रखती हर पल हैं मेरा सब हिसाब आँखें
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तुम पलक के मस्त पन्ने उलटते जाओ
पढ़ रहा हूँ मै तुम्हारी किताब आँखें
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मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी
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Comment
आ० rajesh kumari जी आपकी विस्तृत समीक्षा पाकर अभिभूत हूँ!धीरे धीरे सुधार की ओर तत्पर हूँ! आपके अमूल्य सुझाव के लिए बहुत बहुत आभार! इसी प्रकार मार्गदर्शन करते रहें!मेरा सौभाग्य होगा! सादर!
आदरणीया pratibha tripathi जी सराहना हेतु बहुत बहुत शुक्रिया!!
आ० Shyam Narain Verma जी उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार!
आदरणीय गोपाल सरजी रचना पर आपकी सार्थक प्रतिकिया पाकर मन ख़ुश हुआ!आपके बताये अनुसार कमी को सुधारने का प्रयास करूँगा!!बहुत बहुत आभार!आदरणीय!
कंप्यूटर में तकनीकी ख़राबी और समय की कमी के कारण आप सभी के टिपण्णी पर समय पर अपनी प्रतिक्रिया न दे पाने का मुझे खेद है!
सुन्दर प्रयास ,भाई क्रृष्ण मिश्र जी ,,बाकी आदरणीया राजेश जी ने कह ही दिया है ,मुझे तो इस विधा का विशेष ज्ञान नहीं है ! शुभकामनायें आपको
अब तू सम्हल जिंदगी होश खो चुके हम
है मिला दी आंखों उसने शराब आँखें-----मिसरा व्याकरण के हिसाब से दुरुस्त नहीं है
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ढूंढ लेंगे हम.....रहो पास तुम बैठे
सब सवालों का देती हैं जव़ाब आँखें---ये शेर बेबह्र हो रहा है
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मेरी मोहब्बत इबादत है हर नफ़स में-----मुहब्बत सही शब्द दूसरे जुज्ब-ए-रदीफैन दोष भी आ रहा है
रखती हो तुम तो मेरा सब हिसाब आँखें-----यहाँ भी व्याकरण गड़बड़ है --रखती हैं अब तो मेरा सब हिसाब आँखें- ----हो सकता है
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तुम पलक के मस्त पन्ने उलटते जाओ
पढ़ रहा हूँ 'जान' तेरी किताब आँखें-----उला में तुम ....सानी में तेरी ??? शुतुर्गुरबा दोष बन रहा है
कृष्णा जी ,आप ग़ज़लों पर अच्छा प्रयास कर रहे हैं ,ग़ज़ल की कक्षा की सभी पोस्ट पढ़ते जाइए धीरे धीरे ग़ज़ल सधने लगेंगी
बहुत खूब ! इस सुंदर गजल हेतु बधाई स्वीकारें । |
आ ० कृष्णा जी
बहुत सुन्दर गजल . मतला उम्दा . चौथे शेर में लाज्तमा-ए -जुज्ब -ए -रदीफैन दोष को देखिएगा सस्नेह .
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