खुशियों में होते है सब हमसफ़र..
गम में साथ कोई खड़ा नही होता!
दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...
कोई बड़ा नही होता!
जाने कितनी खायी ठोकरें
लाख रंजिश की गम ने..!
सामने खींचकर बड़ी लकीर
बड़ा बनना सीखा नही हमने..!!
यही करना था तो सियासत आजमाई होती!
हाथ में कलम की न रोशनाई होती..
जंग अदब की मै लड़ा नही होता!!
दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...
कोई बड़ा नही होता!
जिसने रची है सारी ही सृष्टि!
उसने है दी सबको एक आसमाँ एक ही जमीं..
जब खुदा ने,खुद फर्क न किया बन्दों में!
तो बाँध मत वाइज उसे मतलब के धन्धों में!!
लाख बड़ा बन जाये कोई मगर उससे कोई बड़ा नही होता!!
आये है सब वहीँ से,जाना है सबको वहीँ
बात है सच,मानो या मानो नही!
मै,मै हूँ करता तुम,तुम हो करते!
एक वो है कि.... शताब्दियों शताब्दियों
युगों युगों से,सुनता है सबकी
मगर कभी कुछ बोलता नहीं होता !
हम कोई रसूल हैं?
गुनाह अपने भी कई मकबूल हैं
कबूल है!कबूल है!कबूल है!
वर्ना बनके गर्द-ए-गुबारां दर-ए-यारां पड़ा न होता!
दुनिया में ‘जान’ अपना घड़ा न होता!!
दूसरों को करके छोटा ए-दोस्त...
कोई बड़ा नही होता!
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मौलिक व् अप्रकाशित (c) ‘जान’ गोरखपुरी
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Comment
बहुत बढ़िया गहन सन्देश छुपा है प्रस्तुति में ,बहुत पसंद आई ये रचना ,,ढेरों बधाई आपको कृष्ण मिश्रा जी.
आदरणीय मिथिलेश सरजी! हौसलाफजाई के लिए तहेदिल से शुक्रिया!आभार!
आदरणीय गोपाल नारायन सरजी! आपकी सराहना पाकर लेखनकर्म सार्थक हुआ!बहुत बहुत आभार!
आदरणीया meena pathak जी रचना पर आपकी उपस्थिति पाकर!मन हर्षित हुआ!आपकी सराहना से बहुत संबल मिला बहुत बहुत आभार!
आदरणीय shyam mathpal जी हौसलाफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!स्नेह बनाये रखें!
आ० मोहन सेठी सर!उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत आभार! रचनाकर्म पर सदैव आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहती है!
आ० गिरिराज भंडारी सर!आपकी उपस्थिति मात्र से ही रचनाकर्म सार्थक हो जाता है,आपकी सराहनापाकर गदगद हूँ!
बहुत बहुत आभार!सादर!
आदरणीय कृष्ण भाई जी ... सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति पर बधाई
प्रिय कृष्णा
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति . बधाई देता हूँ . स्नेह .
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