वो ख़ूबसूरती नहीं है उनमें
काली अंधेरी रात सी चमड़ी
जैसे अमावस की रात मुखरित
काली नदी की तरह बहाव है
उन्माद भी उनमें, आग भी
सीसम की लकड़ी सी चमक भी
मजबूरी से कसमसाती हुई
मर नहीं पाती उनके भोगने तक
ज़िंदगीभर खूबसूरती खोजती
आँखों में चकाचौंध करने वाला
सफ़ेद घोडा दौड़ता है ताकत से
चने खाता तो मानते, जिस्म खाता है
भाता है केवल रूह छोड़कर सबकुछ
जम्मू-श्रीनगर हाईवे पर खड़े
लम्बे-ऊंचे डरावने साये पैदा करते हुए
उन लम्बे पेड़ों के बीच से निकलती है
किरणे जो ले आती है आतंकीयो की
मन:स्थिति के उजाले को अलगाव सी
बच्चों की मासूमियत पर सवार होकर
महिलाओं की जाँघों से निकलती आह को
रूंधती हुई इंसानियत निचौड़कर बहती है
लाल रंग की नदियाँ रेगिस्तान की तरस
मजहब के ढिंढोरे पीट-पीटकर हरा रही है
सत्ता, महासत्ताओं के गुमान को... !
* * *
31-March-2015 (मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बच्चों की मासूमियत पर सवार होकर
महिलाओं की जाँघों से निकलती आह को
रूंधती हुई इंसानियत निचौड़कर बहती है
लाल रंग की नदियाँ रेगिस्तान की तरस
मजहब के ढिंढोरे पीट-पीटकर हरा रही है
सत्ता, महासत्ताओं के गुमान को... !
निःशब्द हूँ आपकी इस दिल चीरती दास्तान की प्रस्तुति पर। आपकी इस प्रस्तुति ने वहां के लाल रंग के दर्द , कसमसाती इंसानियत को बहुत कही जज़्बाती तरीके से प्रस्तुत किया है। तहे दिल से इस पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय।
बहुत ही मार्मिक चित्रण अपने प्रस्तुत किया है आपको बहुत बहुत बधाई हो ]
आ० पंकज जी,
बहुत ही मार्मिक व हृदयस्पर्शी रचना .हार्दिक बधाई .
आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी और श्री श्याम नारायण वर्मा जी,
हौसला अफज़ाई के लिए धन्यवाद
आदरणीय ,
बहुत ही मार्मिक रचना |
हार्दिक बधाई |
सादर ......
आ० पंकज जी
आपने जम्मू-काश्मीर महो रही आतंकी गतिविधि पर मार्मिक दृष्टि डाली है . बहुत सुन्दर रचना -
ज़िंदगीभर खूबसूरती खोजती
आँखों में चकाचौंध करने वाला
सफ़ेद घोडा दौड़ता है ताकत से
चने खाता तो मानते, जिस्म खाता है
भाता है केवल रूह छोड़कर सबकुछ
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